भोपाल गैस त्रासदी: मेडिकल देखभाल के निर्देशों का पालन न करने का आरोप लगाने वाली अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को नोटिस जारी किया
Amir Ahmad
27 Sept 2025 3:13 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक, मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के प्रमुख सचिव को अवमानना याचिका पर नोटिस जारी किया। यह याचिका भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के मेडिकल रिकॉर्ड के कम्प्यूटरीकरण और उन्हें मेडिकल देखभाल प्रदान करने के लिए 2012 में न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों का पालन न करने के संबंध में दायर की गई।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की खंडपीठ ने रिट याचिका संख्या 10/2012 में जारी निर्देशों का पालन न करने के संबंध में नोटिस जारी किया। भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन बनाम भारत संघ मामले में 9 अगस्त, 2012 को पारित 50/1998 के आदेश के अनुसार न्यायालय ने उक्त निर्देशों के माध्यम से प्रशासनिक पर्यवेक्षण और आदेशों के उचित निष्पादन हेतु मामले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर पीठ को भी ट्रांसफर कर दिया था।
अवमानना याचिका में आरोप लगाया गया कि निर्देशों के अनुपालन हेतु मामला 12 वर्षों से अधिक समय से हाईकोर्ट में लंबित है। याचिकाकर्ताओं ने अनुपालन न होने पर 2015 में अवमानना याचिका दायर की थी। हलांकि पिछले दस वर्षों से हाईकोर्ट ने प्रतिवादी प्राधिकारियों के विरुद्ध कोई भी दंडात्मक कार्रवाई शुरू करने से स्वयं को रोक रखा है।
अवमानना याचिका में निम्नलिखित आरोप लगाए गए:
निगरानी समिति जिसका गठन न्यायालय द्वारा 2004 में किया गया, का पुनर्गठन हाईकोर्ट द्वारा 2013 में किया गया, जिसके अध्यक्ष हाईकोर्ट के रिटायर जज जस्टिस वी.के. अग्रवाल को नियुक्त किया गया। उक्त समिति ने 2012 के निर्देशों के अनुपालन हेतु प्राधिकारियों द्वारा अपेक्षित कार्रवाई की सिफ़ारिश करते हुए 21 रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं। हालांकि, लगभग पूरी तरह से अनुपालन नहीं हुआ।
उदाहरण के लिए, निगरानी समिति ने सूचित किया कि भोपाल मेडिकल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में कार्यरत कई संकाय/डॉक्टर कार्यालय छोड़ चुके हैं या छोड़ने वाले हैं। हालांकि टीकाकरण की आवश्यकता पूरी नहीं हुई।
हाईकोर्ट द्वारा 2013 से प्रतिवादी प्राधिकारियों को अनुपालन न करने के परिणामों के बारे में पूर्व चेतावनी देते हुए कई चेतावनियां जारी की गईं लेकिन इन सभी चेतावनियों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
रिक्त पदों से संबंधित मामले में हाईकोर्ट ने 7 सितंबर, 2016 को केंद्र सरकार को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि यदि यह संतोषजनक नहीं है तो न्यायालय उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है। पुनः, 2017 में हाईकोर्ट ने पाया कि संघ जानबूझकर मामले में देरी कर रहा है। नियमों के निर्माण तथा डॉक्टरों एवं अन्य कर्मचारियों की भर्ती के लिए उचित कदम नहीं उठा रहा है।
जहां तक कम्प्यूटरीकरण का सवाल है, हालांकि NIC और गैस अस्पताल की रिपोर्ट के अनुसार यह काम पूरा हो चुका है। निगरानी समिति का मानना है कि यह संतोषजनक नहीं है। मरीज़ों पर केंद्रित नहीं है, क्योंकि यह मरीज़ों के इलाज का केस हिस्ट्री उपलब्ध कराने में उपयोगी नहीं लगता।
इस मामले में भी न्यायालय ने कई निर्देश और चेतावनियां जारी की थीं, लेकिन उनका पालन नहीं किया गया।
6 जनवरी, 2025 को हाईकोर्ट ने राज्य के उदासीन रुख की स्पष्ट रूप से आलोचना की और कहा,
"ऐसा लगता है कि प्रतिवादी पूरा किए जाने वाले काम के प्रति गंभीर नहीं हैं।"
इस मामले की सुनवाई 14 नवंबर को होगी।

