IPC की धारा 387 | संपत्ति की वास्तविक डिलीवरी आवश्यक नहीं, मौत या गंभीर चोट के भय में डालना ही अपराध के लिए पर्याप्त : सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
12 Jun 2025 8:09 AM

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 387 के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए संपत्ति की वास्तविक डिलीवरी आवश्यक नहीं है। किसी व्यक्ति को मौत या गंभीर चोट के डर में डालना ही इस धारा के अंतर्गत अपराध को पूरा कर देता है।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 387 के तहत दर्ज शिकायत के आधार पर जारी समन रद्द कर दिया गया।
हाईकोर्ट ने यह माना था कि जब तक वास्तव में कोई संपत्ति प्राप्त नहीं हुई तब तक जबरन वसूली (extortion) नहीं मानी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण को खारिज करते हुए कहा कि IPC की धारा 387 के तहत अपराध तभी पूरा हो जाता है जब पीड़ित को मौत या गंभीर चोट का भय दिखाया गया हो, चाहे संपत्ति का कोई हस्तांतरण हुआ हो या नहीं।
मामले की पृष्ठभूमि
यह केस अपीलकर्ता की ओर से दर्ज की गई आपराधिक शिकायत से जुड़ा है, जिसमें आरोप था कि प्रतिवादी नं. 1 और उसके साथियों ने बंदूक की नोंक पर उसे या तो सुपारी का व्यापार बंद करने या 5 लाख प्रति माह देने की धमकी दी।
ट्रायल कोर्ट ने समन जारी किया लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कार्यवाही रद्द कर दी कि जब तक पैसे की अदायगी नहीं हुई तब तक जबरन वसूली का मामला नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
जस्टिस करोल द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि हाईकोर्ट ने IPC की धारा 383 (जबरन वसूली की परिभाषा) के तत्वों को गलत तरीके से लागू किया जबकि IPC की धारा 387 के तहत केवल मौत या गंभीर चोट के भय में डालना ही पर्याप्त है।
कोर्ट ने कहा,
"किसी व्यक्ति को डराने-धमकाने से आरोपी के खिलाफ धारा 387 के तहत अपराध बनता है; इसके लिए धारा 383 के सभी तत्वों को पूरा करना आवश्यक नहीं है।"
कोर्ट ने यह भी कहा,
"शिकायत में दो आवश्यक तत्वों का Prima Facie उल्लेख है (a) शिकायतकर्ता को बंदूक दिखाकर मौत का भय दिखाया गया और (b) 5 लाख की मांग करने के लिए यह किया गया। यह तथ्य कि पैसे की वास्तविक डिलीवरी नहीं हुई अभियोजन को विफल नहीं करता, क्योंकि आरोपी पर धारा 384 (जिसमें संपत्ति की डिलीवरी आवश्यक है) का आरोप नहीं है।"
सुप्रीम कोर्ट ने Somasundaram बनाम राज्य [(2020) 7 SCC 722] मामले का भी हवाला दिया, जिसमें आरोपी ने पीड़ित को दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने के लिए डराया। बाद में उसकी हत्या कर दी फिर भी कोर्ट ने उसे IPC की धारा 387 के तहत दोषी ठहराया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट का निर्णय रद्द किया और मामला ट्रायल कोर्ट को वापस सौंपा। साथ ही दोनों पक्षों को निर्देश दिया गया कि वे पूर्ण सहयोग करें और सुनवाई शीघ्रता से पूरी की जाए।
टाइटल: एम/एस बालाजी ट्रेडर्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य