पति का माता-पिता को पैसे भेजना या खर्च का हिसाब मांगना 'क्रूरता' नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने 498A का मामला किया रद्द

Amir Ahmad

20 Dec 2025 12:55 PM IST

  • पति का माता-पिता को पैसे भेजना या खर्च का हिसाब मांगना क्रूरता नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने 498A का मामला किया रद्द

    सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों में आपराधिक कानून के दुरुपयोग पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए पति के खिलाफ दर्ज क्रूरता और दहेज उत्पीड़न का मामला रद्द किया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति द्वारा अपने माता-पिता और भाई को पैसे भेजना या पत्नी से घरेलू खर्चों का लेखा-जोखा रखने के लिए कहना अपने आप में न तो क्रूरता है और न ही इसे दहेज की मांग के रूप में देखा जा सकता है।

    जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने पति की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि ऐसे आरोपों के आधार पर आपराधिक मुकदमा चलाना उचित नहीं है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पति द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को आर्थिक सहायता देना किसी भी तरह से आपराधिक कृत्य नहीं ठहराया जा सकता। वहीं, पत्नी से एक्सेल शीट में खर्चों का विवरण रखने की अपेक्षा करना, भले ही आरोपों को सही मान लिया जाए, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत 'क्रूरता' की परिभाषा में नहीं आता।

    खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि शिकायत में जिस 'आर्थिक और वित्तीय प्रभुत्व' का आरोप लगाया गया, वह तब तक क्रूरता नहीं माना जा सकता, जब तक उससे किसी ठोस मानसिक या शारीरिक क्षति का स्पष्ट प्रमाण न हो। अदालत ने कहा कि भारतीय समाज की वास्तविकता यह है कि कई परिवारों में पुरुष वित्तीय मामलों में नियंत्रण रखते हैं, लेकिन आपराधिक कानून को निजी प्रतिशोध या व्यक्तिगत विवाद निपटाने का माध्यम नहीं बनाया जा सकता।

    यह मामला पति की पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई FIR से जुड़ा था, जिसमें पति और उसके परिवार के पांच सदस्यों पर IPC की धारा 498A और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए। दोनों पति-पत्नी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और उनकी शादी दिसंबर 2016 में हुई थी। विवाह के बाद वे अमेरिका के मिशिगन में साथ रह रहे थे, जहां अप्रैल, 2019 में उनके बेटे का जन्म हुआ। अगस्त, 2019 में वैवाहिक विवाद के बाद पत्नी बच्चे के साथ भारत लौट आई। इसके बाद जनवरी, 2022 में पति ने दांपत्य अधिकारों की बहाली के लिए कानूनी नोटिस भेजा, जिसके कुछ ही दिनों बाद पत्नी ने आपराधिक शिकायत दर्ज कराई।

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने पहले पति के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

    जस्टिस नागरत्ना द्वारा लिखित फैसले में कहा गया कि पति द्वारा अपने परिवार को पैसे भेजने, घरेलू खर्चों का हिसाब मांगने, गर्भावस्था के दौरान कथित लापरवाही या प्रसव के बाद वजन को लेकर ताने देने जैसे आरोप, भले ही सही मान लिए जाएं, धारा 498A के तहत क्रूरता की श्रेणी में नहीं आते। अदालत ने इन्हें वैवाहिक जीवन के सामान्य उतार-चढ़ाव यानी शादी की सामान्य टूट-फूट का हिस्सा बताया।

    अदालत ने FIR का विश्लेषण करते हुए कहा कि इसमें लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्य प्रकृति के हैं। दहेज की कथित मांग को लेकर न तो कोई ठोस विवरण दिया गया और न ही किसी विशेष घटना का उल्लेख किया गया। एक करोड़ रुपये की मांग का आरोप लगाए जाने के बावजूद शिकायतकर्ता इसे साबित करने के लिए कोई सामग्री या साक्ष्य पेश नहीं कर सकी। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कथित उत्पीड़न से पत्नी को कोई मानसिक या शारीरिक चोट कैसे पहुंची।

    सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि धारा 498A के तहत क्रूरता सिद्ध करने के लिए विशिष्ट घटनाओं और ठोस तथ्यों का उल्लेख आवश्यक है। केवल सामान्य और व्यापक आरोपों के आधार पर आपराधिक कार्यवाही जारी रखना न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में आमतौर पर उत्पीड़न की एक श्रृंखला होती है, जिसे स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए। आरोपों में विवरण की कमी अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर करती है और शिकायत की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है।

    इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पति के खिलाफ दर्ज FIR और उससे जुड़ी कार्यवाही रद्द की और अपील स्वीकार कर ली।

    Next Story