विस्तृत आदेश जज के रिटायर होने के बाद अपलोड करने के CBI के दावे पर सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट से रिपोर्ट मांगी

Amir Ahmad

3 Sep 2024 9:44 AM GMT

  • विस्तृत आदेश जज के रिटायर होने के बाद अपलोड करने के CBI के दावे पर सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट से रिपोर्ट मांगी

    सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को CBI के इस दावे के बाद रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया कि हाईकोर्ट ने एक मामले में एक लाइन का आदेश पारित किया और जज के पद छोड़ने तक विस्तृत आदेश उपलब्ध नहीं कराया गया।

    जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ CBI द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट के एकल जज जस्टिस टी. मथिवनन के एक IRS अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई।

    कोर्ट ने कहा,

    "याचिकाकर्ता का तर्क यह है कि 15 मई 2017 को जज द्वारा एक पंक्ति का आदेश सुनाया गया और जिस तारीख को न्यायाधीश ने पद छोड़ा था, उस तारीख तक तर्कपूर्ण निर्णय उपलब्ध नहीं था। इसलिए हम हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निम्नलिखित जानकारी प्रदान करने का निर्देश देते हैं।”

    सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निम्नलिखित जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया:

    1. जिस तारीख को जज के कार्यालय से रजिस्ट्री को विस्तृत निर्णय प्राप्त हुआ।

    2. जिस तारीख को विस्तृत निर्णय अपलोड किया गया।

    3. क्या जज द्वारा सुने गए नौ मामलों की नए सिरे से सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की ओर से कोई प्रशासनिक निर्देश और क्या वर्तमान SLP का विषय जो मामला है, वह उन मामलों में शामिल है।

    वर्तमान मामला 1999 बैच के एक IRS अधिकारी से जुड़े कथित आय से अधिक संपत्ति के मामले के इर्द-गिर्द घूमता है, जो FIR दर्ज होने के समय आयकर के अतिरिक्त आयुक्त के रूप में काम कर रहे थे। आरोप 1 जनवरी, 2002 और 30 अगस्त 2014 के बीच अधिकारी और उनकी पत्नी द्वारा 3.2 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति और आर्थिक संसाधनों के संचय से संबंधित हैं। CBI ने आरोप लगाया कि ये संपत्तियां उनकी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक हैं और संतोषजनक रूप से बेहिसाब हैं।

    हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार जो अब आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है, हाईकोर्ट ने FIR खारिज की, यह कहते हुए कि कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण इरादे से शुरू की गई, जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत प्रतिशोध था।

    CBI ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दावा किया कि हाईकोर्ट के एकल जज ने 15 मई, 2017 को अदालत में एक लाइन का आदेश पारित किया। उसी दिन उसने आदेश की प्रमाणित प्रति के लिए आवेदन किया।

    CBI की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि रजिस्ट्री ने मौखिक रूप से CBI को सूचित किया कि जज के कार्यालय से विस्तृत आदेश अभी तक प्राप्त नहीं हुआ। संबंधित जज 26 मई, 2017 को रिटायर हो गए। याचिका के अनुसार CBI को 26 जुलाई, 2017 को विवादित आदेश की प्रमाणित प्रति प्रदान की गई।

    कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क यह है कि हाईकोर्ट के जज द्वारा दर्ज किए गए कारण जज के पद छोड़ने तक उपलब्ध नहीं कराए गए। इसके अतिरिक्त CBI के वकील ने कोर्ट के ध्यान में CBI के विशेष लोक अभियोजक (SPP) द्वारा तत्कालीन संयुक्त निदेशक को लिखे गए पत्र को लाया, जिसमें कहा गया कि जज द्वारा सुने गए नौ मामलों को नए सिरे से सुने जाने का आदेश दिया गया। हालांकि पत्र में वर्तमान SLP के केस नंबर का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया लेकिन CBI के वकील ने तर्क दिया कि यह मामला भी नए सिरे से सुनवाई के अधीन नौ मामलों में शामिल है।

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से जानकारी प्राप्त करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट रजिस्ट्रार की रिपोर्ट इस महीने के अंत तक प्रस्तुत की जाए।

    यह पहली बार नहीं है, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मुद्दे पर विचार किया।

    जस्टिस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के उसी जज का फैसला इस आधार पर खारिज कर दिया कि जज ने रिटायरमेंट के लगभग पांच महीने बाद फैसला विस्तृत कारण जारी किए। पीठ ने कहा कि जज द्वारा मामले की फाइल को अपने पास रखना और रिटायरमेंट के बाद विस्तृत फैसला जारी करना घोर अनुचितता थी।

    केस टाइटल- पुलिस निरीक्षक सीबीआई/एसीबी/चेन्नई के माध्यम से राज्य बनाम एस. मुरली मोहन

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