क्रिकेटर खुद अपना ख्याल रख सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई क्रिकेट मैदानों में सुविधाओं के लिए वकील की याचिका खारिज की

Amir Ahmad

6 Sep 2024 1:09 PM GMT

  • क्रिकेटर खुद अपना ख्याल रख सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई क्रिकेट मैदानों में सुविधाओं के लिए वकील की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के विभिन्न क्रिकेट मैदानों में शौचालय और अन्य सुविधाओं के प्रावधान की मांग करने वाले वकील द्वारा दायर याचिका खारिज की।

    याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में राहत देने से इनकार करने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी। जनहित याचिका में मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को अभ्यास मैचों और सार्वजनिक मैदानों पर आयोजित अनौपचारिक खेलों के दौरान खिलाड़ियों खासकर महिलाओं के लिए स्वच्छ पेयजल और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के निर्देश देने की मांग की गई।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के इस तर्क से सहमति जताई कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि खिलाड़ी अपनी शिकायत का समाधान खुद न कर सकें।

    न्यायालय ने कहा,

    "वर्तमान याचिकाकर्ता के कहने पर जनहित याचिका पर विचार न करके हाईकोर्ट ने बिल्कुल सही किया। हम हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से सहमत हैं।"

    जनहित याचिका खारिज करते हुए जस्टिस ओक ने टिप्पणी की,

    "यह किस तरह की जनहित याचिका है? क्रिकेटर खुद ही अपना ख्याल रख सकते हैं। अगर उन्हें शौचालय उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो वे खुद ही अपना ख्याल रखेंगे। वकीलों को इसके बारे में क्यों परेशान होना चाहिए?"

    याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से पेश होकर बताया कि उन्होंने इस आधार पर कठिनाइयां देखी हैं, जिसके कारण उन्हें जनहित याचिका दायर करनी पड़ी।

    हालांकि जस्टिस ओक ने याचिकाकर्ता से सवाल करते हुए पूछा,

    "क्या आप मुख्य रूप से वकील हैं या क्रिकेटर? अगर आप वकील हैं तो क्रिकेटर खुद ही इस मुद्दे को सुलझाने में सक्षम हैं।अगर आप कहते हैं कि आप क्रिकेटर हैं तो यह जनहित याचिका नहीं है। यह व्यक्तिगत हित है।”

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले साल इस मामले में राहत देने से इनकार किया था। अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता प्रैक्टिशनर वकील होने के नाते इस बात का कोई कारण नहीं बता पाया कि खिलाड़ी स्वयं अपनी शिकायतों का निवारण क्यों नहीं मांग सकते। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिका को संबंधित अधिकारियों के लिए सुझाव के रूप में माना जा सकता है, लेकिन इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

    हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया,

    “ऐसा कोई कारण नहीं दिया गया कि यह वर्ग, खिलाड़ी, स्वयं अपनी शिकायतों का निवारण क्यों नहीं मांग सकते। इन परिस्थितियों में उचित कार्यवाही यह होगी कि प्रतिवादी नंबर 1 और 2 को जनहित याचिका (PIL) पर सुझाव के रूप में विचार करने के लिए कहा जाए। यदि उनके लिए ऐसा करना संभव हो तो उन्हें लागू करने के लिए आगे बढ़ें। हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमारे आदेश को प्रतिवादी नंबर 1 और 2 को याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत प्रदान करने के निर्देश के रूप में नहीं बल्कि केवल सुझाव के रूप में समझा जाना चाहिए।”

    हाईकोर्ट ने क्रिकेट अधिकारियों को कोई निर्देश जारी किए बिना जनहित याचिका का निपटारा कर दिया। साथ ही स्पष्ट किया कि अगर कोई पीड़ित खिलाड़ी भविष्य में इस मुद्दे को उठाता है तो उस पर उसके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जा सकता है।

    केस टाइटल - राहुल राजेंद्रप्रसाद तिवारी बनाम मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन

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