सुप्रीम कोर्ट का 'The Temple of Healing' केस पर निर्णय: एडॉप्शन की प्रक्रिया, समस्याएँ, और सुधार

Himanshu Mishra

4 Sept 2024 6:27 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट का The Temple of Healing केस पर निर्णय: एडॉप्शन की प्रक्रिया, समस्याएँ, और सुधार

    भारत में दत्तक ग्रहण (Adoption) की प्रक्रिया को लेकर कई वर्षों से समस्याएँ और विवाद उठते रहे हैं। दत्तक ग्रहण से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाएँ जटिल हैं, और इसके कारण बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और दत्तक माता-पिता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में, 'The Temple of Healing बनाम Union of India' का मामला दत्तक ग्रहण की मौजूदा प्रक्रिया, उसकी कमियों, और सुधार के संभावित तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह मामला न केवल दत्तक ग्रहण की प्रक्रियाओं की समीक्षा करता है, बल्कि इसे सुव्यवस्थित और समयबद्ध बनाने के लिए आवश्यक निर्देश भी प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक मील का पत्थर साबित हो सकता है, जो भारत में दत्तक ग्रहण के क्षेत्र में व्यापक सुधार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

    मामले की पृष्ठभूमि और तथ्य (Background and Facts of the Case)

    यह मामला 'The Temple of Healing' द्वारा दायर की गई एक याचिका पर आधारित है, जिसमें भारत में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने और उसे पारदर्शी बनाने की मांग की गई थी। याचिका में दावा किया गया कि वर्तमान दत्तक ग्रहण प्रक्रिया में कई खामियाँ और देरी हैं, जिनके कारण अनाथ, परित्यक्त (Abandoned) और समर्पित (Surrendered) बच्चों का दत्तक ग्रहण प्रक्रिया में शामिल होने में बहुत समय लगता है। इस याचिका में, केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण (CARA) और केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने आंकड़े और रिपोर्टें प्रस्तुत कीं, जिसमें दत्तक ग्रहण की वर्तमान स्थिति, चुनौतियों और प्रक्रियाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया।

    CARA द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों से पता चला कि भारत में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर देरी हो रही है। 2023 तक, CARINGS पोर्टल पर 33,967 संभावित दत्तक माता-पिता (PAPs - Prospective Adoptive Parents) पंजीकृत थे, जबकि केवल 7,107 बच्चे दत्तक ग्रहण के लिए उपलब्ध थे। इन बच्चों में से 5,656 बच्चे सामान्य श्रेणी में थे और 1,451 बच्चे विशेष आवश्यकताओं वाले (Special Needs) थे। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि दत्तक ग्रहण के लिए पंजीकृत माता-पिता और उपलब्ध बच्चों के बीच भारी अंतर है, जिससे प्रक्रिया में और भी देरी होती है।

    कानूनी प्रावधान और तर्क (Legal Provisions and Arguments)

    इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act, 2015) और दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 (Adoption Regulations, 2022) के प्रावधानों पर गहन विचार किया। इन कानूनी प्रावधानों के तहत, उन बच्चों के लिए दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया निर्धारित की गई है जो अनाथ, परित्यक्त, या समर्पित (OAS - Orphaned, Abandoned, Surrendered) होते हैं। CARA ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इन बच्चों के दत्तक ग्रहण के मामलों को सुगम बनाने के लिए 'CARINGS' प्रणाली विकसित की गई है, जो एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है। इस प्रणाली के माध्यम से, दत्तक ग्रहण प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाने का प्रयास किया गया है।

    हालाँकि, CARA की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि वर्तमान में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ हैं, जिनमें प्रमुख है कि दत्तक माता-पिता को दत्तक ग्रहण के लिए 3 से 4 साल तक का इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा, रिपोर्ट में बताया गया कि दत्तक माता-पिता की प्राथमिकता अक्सर 0 से 2 वर्ष के स्वस्थ और युवा बच्चों की होती है, जिससे इस आयु वर्ग के बच्चों की कमी और भी बढ़ जाती है। यह समस्या इसलिए और गंभीर हो जाती है क्योंकि दत्तक ग्रहण के लिए उपलब्ध बच्चों की संख्या बहुत कम होती है।

    सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)

    सुप्रीम कोर्ट ने CARA और अन्य संबंधित एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों और रिपोर्टों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। अदालत ने पाया कि दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में देरी के कारण बच्चों और दत्तक माता-पिता दोनों को नुकसान हो रहा है। अदालत ने यह भी माना कि दत्तक माता-पिता की प्राथमिकता स्वस्थ और युवा बच्चों के लिए होने के कारण अन्य बच्चों का दत्तक ग्रहण कठिन हो जाता है। इस देरी का एक प्रमुख कारण यह भी है कि दत्तक ग्रहण के लिए योग्य बच्चों की संख्या बहुत कम है, जबकि दत्तक माता-पिता की संख्या कहीं अधिक है।

    अदालत ने यह भी पाया कि दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाने के लिए कई सुधारात्मक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। CARA की इस सुझाव को अदालत ने स्वीकार किया कि सभी राज्यों के नोडल विभागों (Social Justice Department या Women and Child Department) को हर दो महीने में अनाथ, परित्यक्त और समर्पित श्रेणी के बच्चों की पहचान के लिए अभियान चलाना चाहिए। यह कदम उन बच्चों को दत्तक ग्रहण प्रक्रिया में तेजी से शामिल करने के लिए उठाया जाएगा, जो वर्तमान में बाल देखभाल संस्थानों (Child Care Institutions, CCIs) में रह रहे हैं।

    सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Supreme Court's Judgment)

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए, जो दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से थे। अदालत ने निर्देश दिया कि सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अपने-अपने क्षेत्रों में 31 जनवरी 2024 तक विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसियाँ (SAAs - Specialised Adoption Agencies) स्थापित करें। अदालत ने यह भी कहा कि HAMA (Hindu Adoption and Maintenance Act) के तहत दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया स्वतंत्र है और इसे किशोर न्याय अधिनियम के तहत आने वाले नियमों के साथ समन्वयित करने की आवश्यकता नहीं है।

    अदालत ने यह भी कहा कि HAMA के तहत दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित (Align) करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से 1993 के हेग इंटर-कंट्री एडॉप्शन कन्वेंशन के साथ। इस उद्देश्य के लिए, CARA को निर्देश दिया गया कि वह HAMA के तहत दत्तक ग्रहण के मामलों की निगरानी करे और यह सुनिश्चित करे कि यह प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो।

    अदालत ने यह भी कहा कि दत्तक ग्रहण प्रक्रिया के सभी चरणों में समयसीमा का सख्ती से पालन किया जाए। इसके लिए, सभी संबंधित प्राधिकरणों को निर्देश दिया गया कि वे सुनिश्चित करें कि दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया के हर चरण में निर्धारित समयसीमा का पालन हो और इस प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाए।

    निर्देश और सुझाव (Directions and Suggestions)

    सुप्रीम कोर्ट ने दत्तक ग्रहण से जुड़े मामलों में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। इनमें प्रमुख सुझाव यह था कि राज्यों के नोडल विभागों को प्रत्येक दो महीने में एक बार बाल देखभाल संस्थानों (CCIs) में रह रहे बच्चों की पहचान के लिए अभियान चलाना चाहिए। यह पहचान प्रक्रिया उन बच्चों पर केंद्रित होगी जो अनाथ, परित्यक्त या समर्पित (OAS) श्रेणी में आते हैं।

    इसके अलावा, अदालत ने निर्देश दिया कि सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश 31 जनवरी 2024 तक अपने-अपने क्षेत्रों में SAAs स्थापित करें। यह सुनिश्चित किया जाए कि हर जिले में एक SAA हो, जिससे दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक पूरा किया जा सके।

    HAMA के तहत दत्तक ग्रहण के मामलों के लिए, अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश 2021, 2022 और 2023 के लिए HAMA के तहत हुए दत्तक ग्रहण के मामलों का वार्षिक डेटा एकत्र करें और 31 जनवरी 2024 तक CARA को प्रस्तुत करें। इस डेटा को 10 फरवरी 2024 तक अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।

    समस्याएँ और चुनौतियाँ (Problems and Challenges)

    भारत में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में कई समस्याएँ और चुनौतियाँ हैं। इन समस्याओं में प्रमुख हैं:

    1. दत्तक माता-पिता और बच्चों के बीच असमानता (Mismatch between Adoptive Parents and Children): दत्तक माता-पिता की संख्या बहुत अधिक है, जबकि दत्तक ग्रहण के लिए उपलब्ध बच्चों की संख्या बहुत कम है। इससे दत्तक माता-पिता को कई वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है।

    2. प्रक्रियात्मक देरी (Procedural Delays): दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में कई चरण होते हैं, जिनमें से प्रत्येक चरण में देरी हो सकती है। यह देरी बच्चों के लिए हानिकारक हो सकती है, क्योंकि इससे उनका दत्तक ग्रहण जल्द नहीं हो पाता।

    3. विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों का दत्तक ग्रहण (Adoption of Special Needs Children): विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों का दत्तक ग्रहण एक और चुनौती है। दत्तक माता-पिता अक्सर स्वस्थ और युवा बच्चों की प्राथमिकता देते हैं, जिससे विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों का दत्तक ग्रहण कठिन हो जाता है।

    4. HAMA और किशोर न्याय अधिनियम के बीच असमंजस (Confusion between HAMA and Juvenile Justice Act): HAMA के तहत दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया और किशोर न्याय अधिनियम के तहत दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया के बीच असमंजस है। यह असमंजस दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को और जटिल बनाता है।

    'The Temple of Healing बनाम Union of India' मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारत में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय न केवल दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जाए और उन्हें एक सुरक्षित और स्नेही परिवार मिले।

    सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में शामिल सभी संबंधित पक्षों को एक स्पष्ट दिशा मिलेगी और यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाए। यह निर्णय निस्संदेह भारत में दत्तक ग्रहण के क्षेत्र में व्यापक सुधार का मार्ग प्रशस्त करेगा और बच्चों के कल्याण की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान देगा।

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