सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माना लगाने के एकतरफा आदेश पारित करने की NGT की प्रवृत्ति की आलोचना की

Shahadat

7 Feb 2024 6:55 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माना लगाने के एकतरफा आदेश पारित करने की NGT की प्रवृत्ति की आलोचना की

    सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) की एक पक्षीय आदेश पारित करने और हर्जाना लगाने की प्रथा पर अपना असंतोष व्यक्त किया।

    जस्टिस पीएस नरसिम्हा द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि इस तरह की एकतरफा निर्णय लेना 'दुर्भाग्य से एक प्रचलित मानदंड बन गया है।'

    कोर्ट ने कहा,

    “NGT की बार-बार एकतरफा निर्णय लेने पूर्वव्यापी पुनर्विचार सुनवाई का प्रावधान करने और इसे नियमित रूप से खारिज करने की प्रवृत्ति अफसोसजनक रूप से प्रचलित मानदंड बन गई है। न्याय की अपनी उत्साही खोज में न्यायाधिकरण को औचित्य की अनदेखी से बचने के लिए सावधानी से चलना चाहिए। एकपक्षीय आदेशों की प्रथा और करोड़ों रुपये का हर्जाना लगाना, पर्यावरण सुरक्षा के व्यापक मिशन में एक प्रतिकूल शक्ति साबित हुआ है।'

    कोर्ट ने कहा कि ऐसे आदेशों पर लगातार सुप्रीम कोर्ट से रोक का सामना करना पड़ा है।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "ट्रिब्यूनल के लिए यह जरूरी है कि वह प्रक्रियात्मक अखंडता की नए सिरे से भावना पैदा करे, यह सुनिश्चित करे कि उसके कार्य न्याय और उचित प्रक्रिया के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन के साथ प्रतिध्वनित हों। केवल तभी यह पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक के रूप में अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त कर सकता है, जहां नेक इरादे से प्रयास किए जाते हैं।''

    जस्टिस अरविंद कुमार की सहभागिता वाली खंडपीठ ने प्रक्रियात्मक अखंडता की आवश्यकता पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि न्याय और उचित प्रक्रिया को संतुलित करने के लिए यह महत्वपूर्ण है।

    खंडपीठ ने कहा,

    केवल तभी यह पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक के रूप में अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त कर सकता है, जहां नेक इरादे वाले प्रयास यूं ही नष्ट नहीं हो जाते।

    ये टिप्पणियां तब सामने आईं जब सुप्रीम कोर्ट NGT के आदेश को चुनौती देने वाली दो अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। मुख्य आदेश में ट्रिब्यूनल ने स्वत: संज्ञान कार्यवाही में अपीलकर्ताओं के खिलाफ एकपक्षीय आदेश पारित किया था। साथ ही मुआवजा भुगतान का भी निर्देश दिया गया। दूसरे आदेश में अपीलकर्ता द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई। पुनर्विचार में अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसे सुने बिना एक प्रतिकूल आदेश पारित किया गया।

    इस पृष्ठभूमि में मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। न्यायालय ने कहा कि परियोजना समर्थकों को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया और न्यायाधिकरण ने तथ्यों को सत्यापित करना आवश्यक नहीं समझा।

    कोर्ट ने कहा,

    “उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि ट्रिब्यूनल ने स्वयं नोट किया कि परियोजना समर्थकों को नोटिस जारी नहीं किए गए। ट्रिब्यूनल मामले में तथ्यों को सत्यापित करने के लिए परियोजना प्रस्तावक को सुनना अनावश्यक मानता है।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि अपीलकर्ताओं के पास मामले को लड़ने का पूरा अवसर नहीं था। जब अपील दायर की गई तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश दिनांक 04.03.2022 के माध्यम से ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी। इस बात पर जोर देते हुए कि दो साल बीत चुके हैं और स्टे अभी भी लागू है, कोर्ट ने विवादित आदेशों को रद्द कर दिया। ऐसा करते हुए कोर्ट ने मामले को वापस ट्रिब्यूनल को भी भेज दिया।

    कोर्ट ने आदेश दिया,

    "कहने की जरूरत नहीं है कि ट्रिब्यूनल 31.08.2021 और 26.11.2021 के आदेशों में की गई टिप्पणियों और निष्कर्षों से प्रभावित हुए बिना मामले की सुनवाई करेगा।"

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