NEET-UG : फीस जमा करने की समय-सीमा चूकने पर MBBS सीट खोने वाली स्टूडेंट सुप्रीम कोर्ट पहुंची

Amir Ahmad

17 Nov 2025 1:07 PM IST

  • NEET-UG : फीस जमा करने की समय-सीमा चूकने पर MBBS सीट खोने वाली स्टूडेंट सुप्रीम कोर्ट पहुंची

    तमिलनाडु की एक स्टूडेंट जिसे फीस भुगतान की अंतिम तारीख चूक जाने के कारण MBBS सीट गंवानी पड़ी, उसने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 19 नवंबर को करेगा। स्टूडेंट का कहना है कि आर्थिक तंगी और तकनीकी सीमाओं के कारण वह समय पर ऑनलाइन भुगतान नहीं कर सकी।

    मामले का ज़िक्र चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ के सामने किया गया। स्टूडेंट की ओर से एडवोकेट ने कहा कि मामला अत्यंत तात्कालिक है क्योंकि उसी दिन स्ट्रे काउंसलिंग हो रही है और उसकी सीट किसी अन्य को आवंटित की जा सकती है। एडवोकेट ने कहा कि स्टूडेंट को 15 लाख रुपये जमा करने थे लेकिन अंतिम दिन पैसे की व्यवस्था होने के बावजूद वह भुगतान नहीं कर सकी, क्योंकि भुगतान के लिए जिन 7 बैंकों की सुविधा उपलब्ध थी उनमें उसका खाता नहीं था।

    सीजेआई ने मामले को परसों सूचीबद्ध करने के लिए सहमति दी।

    स्टूडेंट ने वर्ष 2025–26 की NEET-UG परीक्षा में 251 अंक हासिल किए थे और उसे 3 नवंबर 2025 को मदा मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट में सीट आवंटित हुई थी। नियमों के अनुसार परिणाम जारी होने के बाद उम्मीदवारों को अलॉटमेंट ऑर्डर डाउनलोड कर 8 नवंबर तक कॉलेज में रिपोर्ट करना था। स्टूडेंट के अनुसार वे लोग 15 लाख रुपये की फीस 8 नवंबर को ही जुटा पाए लेकिन वह दिन महीने का दूसरा शनिवार था, जिसके चलते न तो NEFT और न ही RTGS ट्रांज़ैक्शन संभव था।

    स्टूडेंट का आरोप है कि उसने और उसकी माँ ने कॉलेज से संपर्क करने की कोशिश की पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। चूंकि 8 नवंबर को वह कॉलेज नहीं पहुंची, इसलिए उसकी सीट को रिक्त मानकर स्ट्रे वैकेंसी में शामिल कर दिया गया। मजबूर होकर स्टूडेंट ने अदालत से एडमिशन की अनुमति के लिए याचिका दायर की।

    मद्रास हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने पहले स्टूडेंट को राहत देते हुए उसका एडमिशन बहाल करने का निर्देश दिया था। जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा था कि स्टूडेंट ने उच्च अंक प्राप्त किए हैं और उसे मौका दिया जाना चाहिए। हालांकि, अगले ही दिन हाईकोर्ट की विभाजन पीठ जस्टिस एस.एम. सुब्रमण्यम और जस्टिस मोहम्मद शफीक ने इस आदेश को निरस्त कर दिया।

    खंडित पीठ ने कहा कि प्रॉस्पेक्टस में निर्धारित समयसीमा को सभी उम्मीदवारों के लिए समान रूप से लागू करना आवश्यक है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि कई विद्यार्थी इसी तरह भुगतान में देरी या किसी अन्य कारण से समय पर कॉलेज नहीं पहुँच पाए होंगे इसलिए किसी एक उम्मीदवार को अपवादस्वरूप राहत देना नियमों के खिलाफ होगा।

    आदेश निरस्त करने के बाद खंडपीठ ने स्टूडेंट से बात की और उसे हिम्मत न हारने किसी अन्य पाठ्यक्रम को अपनाने और आगे बढ़ने की सलाह दी।

    अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या स्टूडेंट को मेडिकल कोर्स में एडमिशन पाने का एक और अवसर दिया जा सकता है या हाईकोर्ट का निर्णय ही अंतिम रूप से कायम रहेगा।

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