'UP Madarsa Act' को असंवैधानिक घोषित करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Shahadat

30 March 2024 10:46 AM GMT

  • UP Madarsa Act को असंवैधानिक घोषित करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई। उक्त याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें 'यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' (UP Madarsa Act) को असंवैधानिक घोषित किया गया।

    अंजुम कादरी और अन्य द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट ने विवेकपूर्ण आदेश पारित करते समय गंभीर त्रुटि की और उसने बार की सकारात्मक सहायता पर विचार नहीं किया। कोर्ट ने उन मुद्दों के बारे में अपने तरीके से मनमाना आदेश पारित किया, जिनके बारे में कभी प्रार्थना नहीं की गई।

    याचिका एडवोकेट प्रदीप कुमार यादव द्वारा तैयार की गई है और एओआर संजीव मल्होत्रा के माध्यम से दायर की गई।

    गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने 22 मार्च, 2023 के अपने आदेश में कहा कि धर्मनिरपेक्ष राज्य के पास धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने या केवल किसी विशेष धर्म और उससे जुड़े दर्शन के लिए स्कूली शिक्षा के लिए बोर्ड स्थापित करने की कोई शक्ति नहीं है।

    इस बात पर जोर देते हुए कि बच्चों को धर्मनिरपेक्ष प्रकृति की शिक्षा प्रदान करना राज्य का सबसे बड़ा कर्तव्य है, जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य विभिन्न धर्मों से संबंधित बच्चों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता और उन्हें विभिन्न प्रकार की शिक्षा नहीं दे सकता।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    “चूंकि शिक्षा देना राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में से एक है, यह उक्त क्षेत्र में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय धर्मनिरपेक्ष बने रहने के लिए बाध्य है। यह किसी विशेष धर्म की शिक्षा, उसके निर्देशों, नुस्खों और दर्शन की व्यवस्था नहीं कर सकता या अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग शिक्षा प्रणाली नहीं बना सकता। राज्य की ओर से ऐसी कोई भी कार्रवाई धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन होगी, जो भारत के संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है... राज्य की ओर से ऐसी कार्रवाई न केवल असंवैधानिक है, बल्कि धर्म के आधार पर अत्यधिक विभाजनकारी भी है।”

    इस संबंध में न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि राज्य का कोई भी विधायी अधिनियम संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है, जो कि धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों में से एक है, तो इसे निरस्त किया जाना तय है।

    इसके साथ ही कोर्ट ने 2004 के कानून को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों और भारत के संविधान का उल्लंघन करने वाला पाया था। न्यायालय ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि Madarsa Act के तहत प्रदान की जा रही शिक्षा भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 21ए का उल्लंघन है।

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