शुरुआत में सहमति से बना रिश्ता हमेशा एक जैसा नहीं रह सकता: सुप्रीम कोर्ट ने रेप केस रद्द करने से इनकार किया

Shahadat

9 March 2024 4:16 AM GMT

  • शुरुआत में सहमति से बना रिश्ता हमेशा एक जैसा नहीं रह सकता: सुप्रीम कोर्ट ने रेप केस रद्द करने से इनकार किया

    किसी रिश्ते की शुरुआत में सहमति हो सकती है, लेकिन आने वाले समय में वही स्थिति हमेशा बनी नहीं रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार करते हुए उक्त टिप्पणी की।

    जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने अपने हालिया आदेश में कहा,

    "जब भी कोई पार्टनर इस तरह के रिश्ते को जारी रखने के लिए अपनी अनिच्छा दिखाता है तो ऐसे रिश्ते का चरित्र तब कायम नहीं रहेगा, जब यह शुरू हुआ था।"

    वर्तमान मामले में आरोपी/वर्तमान अपीलकर्ता का शिकायतकर्ता/प्रतिवादी के साथ रिश्ता था, जो बाद में खराब हो गया। दोनों पक्षकारों पर कई आरोप-प्रत्यारोप लगे। वर्तमान मामला प्रतिवादी द्वारा आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दायर की गई एफआईआर से संबंधित है। आरोपी के खिलाफ बलात्कार और आपराधिक धमकी सहित भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) के कई प्रावधानों के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के प्रावधान भी लागू किए गए।

    अपीलकर्ता ने एफआईआर रद्द करने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वहां असफल होने पर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई।

    अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्रतिवादी के कृत्य पूर्व की उसके खिलाफ ब्लैकमेलिंग/जबरन वसूली की शिकायत का प्रतिकार है।

    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों को स्वाभाविक रूप से असंभव नहीं माना जा सकता। यह एफआईआर (हरियाणा राज्य एवं अन्य बनाम भजन लाल एवं अन्य) रद्द करने का आधार है।

    न्यायालय इस दृष्टिकोण से सहमत हुआ कि सहमति से बनाया गया संबंध बलात्कार के अपराध को जन्म नहीं दे सकता है, जैसा कि शंभू खरवार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, 2022 आईएनएससी 827 के मामले में माना गया। हालांकि, अगले ही पल न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी के आरोप उसकी ओर से निरंतर सहमति प्रदर्शित नहीं करते।

    न्यायालय ने ऊपर उल्लिखित आरोप दोहराये। इसके आधार पर, न्यायालय ने राय दी कि एफआईआर रद्द करने का औचित्य साबित करने के लिए संबंध सहमतिपूर्ण नहीं रहे।

    कोर्ट ने कहा,

    हमें यह भी नहीं लगता कि शिकायत, जिसके अनुसरण में एफआईआर दर्ज की गई, उसमें कथित अपराधों की सामग्री का अभाव है।

    इस पर गौर करते हुए कोर्ट ने विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। इसने यह भी निर्देश दिया कि भविष्य में सभी संबंधित न्यायालयों में लंबित कार्यवाही में प्रतिवादी की पहचान छिपाने के लिए उचित कदम उठाए जाएं।

    केस टाइटल: राजकुमार बनाम कर्नाटक राज्य

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