Order 41 Rule 31 CPC | यदि अपीलीय अदालत ने उनसे अन्यथा निपटा है तो मुद्दों को अलग-अलग फ्रेम करने में चूक घातक नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
13 May 2024 10:35 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 41 नियम 31 के अनुसार प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा निर्धारण के बिंदुओं को तय करने में चूक तब तक घातक साबित नहीं होगी, जब तक कि पहली अपीलीय अदालत सभी का निपटारा नहीं कर लेती। उक्त अपील में विचार-विमर्श के लिए जो मुद्दे उठते हैं।
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने कहा,
“इस प्रकार, भले ही पहली अपीलीय अदालत पहली अपील में उत्पन्न होने वाले निर्धारण के लिए बिंदुओं को अलग से तय नहीं करती है, लेकिन यह तब तक घातक साबित नहीं होगा जब तक कि अदालत उन सभी मुद्दों से निपटती है, जो वास्तव में उक्त अपील में विचार-विमर्श के लिए उठते हैं। इस संबंध में CPC के आदेश 41 नियम 31 के आदेश का पर्याप्त अनुपालन पर्याप्त है।''
जस्टिस संजय कुमार द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि यदि CPC के आदेश 41 नियम 31 के आदेश का पर्याप्त अनुपालन होता है, जिसके तहत प्रथम अपीलीय अदालत ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील में सुनवाई के बाद अपील में उत्पन्न होने वाले प्रत्येक मुद्दे की जांच करती है। तब दोनों पक्षों द्वारा प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा अलग-अलग निर्धारण बिंदु निर्धारित करने की चूक घातक साबित नहीं होगी।
CPC का आदेश 41 मूल डिक्री से अपील से संबंधित है, जिसमें नियम 31 में कहा गया कि प्रथम अपीलीय अदालत का निर्णय लिखित रूप में होगा।
इसमें कहा जाएगा:
(1) निर्धारण के लिए बिंदु।
(2) उस पर निर्णय।
(3) निर्णय के कारण।
(4) जहां अपील की गई डिक्री उलट दी गई या बदल दी गई, अपीलकर्ता उस राहत का हकदार है।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि प्रथम अपीलीय अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित मूल डिक्री से अपील के खिलाफ निर्धारण के लिए बिंदु तय करने को छोड़ दिया।
इस तरह के तर्क को खारिज करते हुए न्यायालय ने ललितेश्वर प्रसाद सिंह और अन्य बनाम एस.पी. श्रीवास्तव (मृत) के फैसले पर भरोसा जताया, जहां यह माना गया कि निर्धारण के लिए बिंदुओं को तय करने में चूक प्रथम अपीलीय न्यायालय का फैसला रद्द नहीं करेगी, बशर्ते कि प्रथम अपीलीय न्यायालय ने दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर अपने कारण दर्ज किए हों।
सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान मामले में कहा,
“जैसा कि यहां पहले ही उल्लेख किया गया, हाईकोर्ट ने फैसले के मुख्य भाग में ट्रायल कोर्ट द्वारा तय किए गए सभी मुद्दों को निर्धारित किया। इसलिए वह उन सभी बिंदुओं के प्रति पूरी तरह से सचेत था, जिन पर उसे अपील में विचार करना था। इसके अलावा, हमें यह नहीं मिला कि ट्रायल कोर्ट द्वारा विचार किए गए किसी भी विशेष मुद्दे को अपील पर फैसला सुनाते समय हाईकोर्ट द्वारा छोड़ दिया गया। वास्तव में हम इस तर्क में दम नहीं पाते हैं कि इस प्रारंभिक आधार पर आक्षेपित निर्णय रद्द किया जा सकता है, जिससे हाईकोर्ट द्वारा पहली अपील पर नए सिरे से पुनर्विचार की आवश्यकता होती है।''
उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर कॉउट ने माना कि हाईकोर्ट द्वारा प्रतिवादी द्वारा दायर पहली अपील को अनुमति देना पूरी तरह से उचित था।
केस टाइटल: मृगेंद्र इंद्रवदन मेहता और अन्य बनाम अहमदाबाद नगर निगम