कोई भी संवैधानिक न्यायालय ट्रायल कोर्ट को किसी विशेष तरीके से जमानत आदेश लिखने का निर्देश नहीं दे सकता : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
18 Dec 2024 1:52 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देशों पर असहमति जताई कि ट्रायल कोर्ट को जमानत आवेदनों पर निर्णय करते समय अभियुक्तों के आपराधिक इतिहास को सारणीबद्ध चार्ट में शामिल करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ट्रायल कोर्ट को किसी विशेष तरीके से जमानत आदेश लिखने का निर्देश नहीं दे सकता।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने जिला एवं सेशन जज द्वारा उनके खिलाफ हाईकोर्ट द्वारा की गई कुछ प्रतिकूल टिप्पणियों के खिलाफ दायर अपील पर निर्णय लेते हुए यह प्रासंगिक टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने प्रतिकूल टिप्पणी इसलिए की, क्योंकि जज ने जमानत आवेदन खारिज करते समय आपराधिक इतिहास के सारणीबद्ध चार्ट को शामिल नहीं किया।
2020 में हाईकोर्ट (जुगल किशोर बनाम राजस्थान राज्य) ने जमानत आवेदकों के आपराधिक इतिहास को दर्ज करने के लिए ट्रायल कोर्ट को निर्देश जारी किए। 2021 में इसी तरह के निर्देशों को अन्य मामले (गगनदीप @ गोल्डी बनाम राजस्थान राज्य) में दोहराया गया। दूसरे मामले (गगनदीप @ गोल्डी) में जारी किए गए उन सामान्य निर्देशों को सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2023 में एसएलपी (सीआरएल) नंबर 11675-11676/2022 में हटा दिया।
वर्तमान मामले में न्यायिक अधिकारी ने दिसंबर, 2022 में संबंधित जमानत आदेश पारित किया। हाईकोर्ट ने उनसे स्पष्टीकरण मांगा। आदेश में हाईकोर्ट ने देखा कि न्यायिक अधिकारी की कार्रवाई न्यायिक अनुशासन के बराबर है। हाईकोर्ट के अवलोकन को चुनौती देते हुए जज ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए सामान्य निर्देशों को अस्वीकार कर दिया। वर्तमान मामले में न्यायिक अधिकारी ने निर्धारित सारणीबद्ध चार्ट में नहीं होने के बावजूद अभियुक्तों के आपराधिक पूर्ववृत्त का उल्लेख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"यदि जुगल किशोर के मामले में दिए गए निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाना है तो न्यायालय को जमानत आवेदनों की सुनवाई स्थगित करनी पड़ सकती है, जिससे अभियोजक निर्धारित सारणीबद्ध प्रारूप में विवरण प्रस्तुत कर सके।"
यह कहते हुए कि आपराधिक पृष्ठभूमि के सभी विवरणों को निर्धारित प्रारूप में शामिल करना आवश्यक नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जुगल किशोर के मामले में दिए गए निर्देशों को अनिवार्य नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने कहा,
"यदि हाईकोर्ट यह निर्देश देता है कि प्रत्येक जमानत आदेश में चार्ट को एक विशेष प्रारूप में शामिल किया जाना चाहिए तो यह ट्रायल कोर्ट को दिए गए विवेक में हस्तक्षेप होगा।"
न्यायालय ने कहा,
"कोई भी संवैधानिक न्यायालय ट्रायल कोर्ट को जमानत आवेदनों पर विशेष तरीके से आदेश लिखने का निर्देश नहीं दे सकता। संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधीश का विचार हो सकता है कि ट्रायल कोर्ट को एक विशेष प्रारूप का उपयोग करना चाहिए। दूसरे न्यायाधीश का विचार हो सकता है कि कोई अन्य प्रारूप बेहतर है।"
न्यायालय ने न्यायिक पक्ष की ओर से की गई कार्रवाई के लिए स्पष्टीकरण मांगने वाले हाईकोर्ट पर भी असहमति जताई। न्यायालय ने प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाते हुए कहा कि स्पष्टीकरण केवल प्रशासनिक कार्यवाही के लिए मांगा जा सकता है।
केस टाइटल : अयूब खान बनाम राजस्थान राज्य