Nithari Killings Case| सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी सुरेंद्र कोली को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी किया

Shahadat

8 July 2024 7:06 AM GMT

  • Nithari Killings Case| सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी सुरेंद्र कोली को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने 2005-2006 के नोएडा सीरियल मर्डर केस (निठारी कांड) के आरोपियों में से एक सुरेंद्र कोली को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली CBI की याचिकाओं पर नोटिस जारी किया।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील सुनने के बाद यह आदेश पारित किया, जिन्होंने तर्क दिया कि कोली सीरियल किलर है, जो छोटी लड़कियों को बहला-फुसलाकर उनकी हत्या करता था। हत्याओं को "भयानक" बताते हुए एसजी ने अदालत को बताया कि नरभक्षण के आरोप है और ट्रायल कोर्ट ने कोली को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पारित विवादित आदेश के माध्यम से इसे उलट दिया गया।

    निठारी हत्याकांड दिसंबर 2006 में प्रकाश में आया, जब नोएडा के निठारी में व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे नाले से कई बच्चों/महिलाओं के कंकाल बरामद किए गए। जांच के बाद पंढेर और उसके घरेलू सहायक सुरेंद्र कोली पर CBI ने हत्या और बलात्कार के अलावा अन्य मामलों में मामला दर्ज किया। दोनों को दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई - कोली को 12 मामलों में और पंढेर को 2 मामलों में।

    हालांकि, अक्टूबर 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सबूतों के अभाव में पंढेर और कोली को बरी कर दिया। जांच के तरीके पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट ने हत्याओं के पीछे अंग व्यापार की वास्तविक वजह होने की प्रबल संभावना को 'पूरी तरह से नजरअंदाज' करने के लिए CBI की खिंचाई की। यह भी कहा कि पंढेर के घर से सटे घर के निवासी को पहले किडनी घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "हमें ऐसा लगता है कि जांच ने घर के गरीब नौकर को शैतान बताकर फंसाने का आसान रास्ता चुना, जबकि अंग व्यापार की संगठित गतिविधि में संभावित संलिप्तता के अधिक गंभीर पहलुओं की जांच करने का उचित ध्यान नहीं रखा गया।"

    यह भी चौंकाने वाला था कि कोली का कबूलनामा 60 दिनों की पुलिस रिमांड के बाद बिना किसी मेडिकल जांच के दर्ज किया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि कोली को कोई कानूनी सहायता प्रदान नहीं की गई और उसके द्वारा लगाए गए यातना के आरोपों की जांच नहीं की गई।

    आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करने के बारे में चिंता जताते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

    "आरोपी के खुलासे को दर्ज करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, जिससे जैविक अवशेष यानी खोपड़ी, हड्डियां और कंकाल आदि बरामद किए जा सकें, लेकिन इस प्रक्रिया को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। गिरफ्तारी, बरामदगी और कबूलनामे के महत्वपूर्ण पहलुओं से जिस लापरवाही और लापरवाही से निपटा गया, वह कम से कम कहने के लिए सबसे निराशाजनक है।"

    यह भी पाया गया कि मजिस्ट्रेट ने कोली के स्वैच्छिक कबूलनामे के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज नहीं की और केवल 'लगता है' शब्द का इस्तेमाल किया, जिसे धारा 164 सीआरपीसी के अनुसार स्वैच्छिक कबूलनामे के रूप में नहीं माना जा सकता।

    बरी किए जाने से व्यथित होकर CBI ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई याचिकाएं दायर कीं, जिनमें से 9 आज सूचीबद्ध थीं।

    केस टाइटल: राज्य के माध्यम से केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम सुरेंद्र कोली, डायरी नंबर 15138-2024 (और संबंधित मामले)

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