मोरबी ब्रिज हादसा: सुप्रीम कोर्ट ने ओरेवा मैनेजर की जमानत रद्द करने की पीड़ितों की याचिका खारिज की

Shahadat

19 Jan 2024 12:58 PM GMT

  • मोरबी ब्रिज हादसा: सुप्रीम कोर्ट ने ओरेवा मैनेजर की जमानत रद्द करने की पीड़ितों की याचिका खारिज की

    मोरबी ब्रिज हादसे के आरोपी दिनेशकुमार दवे को जमानत देने की चुनौती खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ओरेवा मैनेजर के खिलाफ जांच पूरी हो चुकी है और कारावास को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता।

    जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि हालांकि दवे को ओरेवा में मैंनेजर होने का दावा किया गया था, लेकिन वह "छोटी कीमत" कमा रहे थे।

    संक्षेप में कहें तो यह मामला 30 अक्टूबर, 2022 को मोरबी में केबल ब्रिज के ढहने से उत्पन्न हुआ, जिसके कारण लगभग 135 लोगों की जान चली गई। एफआईआर में लगाए गए आरोपों के अनुसार, पुल, जिसका रखरखाव/नवीनीकरण ओरेवा ग्रुप द्वारा किया जा रहा था, अनुचित नवीनीकरण/रखरखाव के कारण यानी प्रबंधन की लापरवाही के कारण ढह गया।

    दवे पर आरोप लगाया गया कि वह ओरेवा कंपनी में मैनेजर था और नवीकरण कार्य की देखरेख का प्रभारी था। उन्हें 31 अक्टूबर, 2022 को गिरफ्तार किया गया और आरोप पत्र में आरोपी के रूप में पेश किया गया।

    आक्षेपित आदेश के अनुसार, दवे को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 114, 304, 308, 336, 337 के तहत दर्ज अपराध में गुजरात हाईकोर्ट द्वारा जमानत दे दी गई थी। हाईकोर्ट ने माना कि ओरेवा के अन्य कर्मचारियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि मुकदमा निकट भविष्य में शुरू होने की संभावना नहीं है।

    यह नोट किया गया कि दवे, हालांकि कथित तौर पर मैनेजर था, प्रति दिन 1130/- रुपये का वेतन ले रहा था और प्रबंध निदेशक के निर्देशों का पालन कर रहा था। अदालत की भी प्रथम दृष्टया राय थी कि दवे स्थानीय अधिकारियों के साथ किसी भी बैठक में शामिल नहीं हुए थे। इसलिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं थे।

    दुखी होकर मृतक पीड़ितों के परिजनों की संस्था ट्रेजेडी विक्टिम एसोसिएशन मोरबी ने दवे को दी गई जमानत रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एसोसिएशन के वकील ने आग्रह किया कि दवे मोरबी पुल के नवीनीकरण की देखरेख के लिए जिम्मेदार दो मैनेजर में से एक थे।

    जस्टिस एमएम सुंदरेश ने दवे का जिक्र करते हुए कहा,

    "उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जांच हो चुकी है...और क्या...[क्या उन्हें] कारावास में ही रहना चाहिए?"

    इस सवाल पर कि दवे की ओर से कर्तव्य की विफलता कहां थी, एसोसिएशन के वकील ने यह दावा करने की कोशिश की कि वह प्रशासनिक पद पर थे और पर्यवेक्षण के प्रभारी थे। हालांकि, इसका अदालत पर कोई असर नहीं पड़ा।

    गुजरात हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाते हुए याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: ट्रेजेडी विक्टिम एसोसिएशन मोरबी बनाम दिनेशकुमार मनसुखराय दवे और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 866/2024

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