केंद्र सरकार के कर्मचारी के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मात्र देना DPC की सिफारिशों को सीलबंद लिफाफे में रखने का कारण नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
25 Sept 2024 10:25 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केंद्र सरकार के कर्मचारी के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मात्र देना विभागीय पदोन्नति समिति (DPC) की सिफारिशों को सीलबंद लिफाफे में रखने का कारण नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन स्वीकृति मात्र देने से यह नहीं कहा जा सकता कि आपराधिक आरोप के लिए अभियोजन DPC सिफारिशों के संबंध में सीलबंद लिफाफे की प्रक्रिया को अपनाता है।
जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के निर्णयों के खिलाफ भारत संघ की अपील खारिज करते हुए ऐसा माना, जिसमें कहा गया कि प्रतिवादी के खिलाफ डीपीसी सिफारिशों को सीलबंद लिफाफे में रखने का कोई औचित्य नहीं है।
जब प्रतिवादी 2001 में आयकर के अतिरिक्त आयुक्त के रूप में काम कर रहा था, तब उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराधों के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की गई। वर्ष 2007 में आयकर आयुक्त के पद पर पदोन्नति के लिए प्रतिवादी के बारे में DPC की सिफारिशों को इस आधार पर सीलबंद लिफाफे में रखा गया कि उसके खिलाफ 'आपराधिक आरोप के लिए अभियोजन' लंबित था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा विचारित मुद्दा यह था:
"क्या अभियोजन स्वीकृति प्रदान करने मात्र से यह कहा जा सकता है कि प्रतिवादी सरकारी सेवक के खिलाफ आपराधिक आरोप के लिए अभियोजन लंबित है। क्या अभियोजन स्वीकृति प्रदान करना DPC सिफारिशों को सीलबंद लिफाफे में रखने के लिए एक वैध आधार हो सकता है"?
न्यायालय ने उल्लेख किया कि 14 सितंबर, 1992 के कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, सीलबंद लिफाफे की प्रक्रिया का सहारा तीन श्रेणियों के सरकारी सेवकों के संबंध में लिया जा सकता है - वे जो निलंबित हैं, वे जिनके संबंध में आरोप पत्र जारी किया गया। अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित है और वे जिनके संबंध में आपराधिक आरोप के लिए अभियोजन लंबित है।
न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या अभियोजन स्वीकृति प्रदान करने मात्र से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रतिवादी के खिलाफ आपराधिक आरोप के लिए अभियोजन लंबित है।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम के.वी. जानकीरामन (1991) 4 एससीसी 109 का संदर्भ दिया गया, जिसमें यह माना गया कि चार्ज मेमो/चार्ज शीट जारी होने के बाद ही सीलबंद लिफाफे की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।
जानकीरामन निर्णय के बाद जारी 2 नवंबर, 2012 के ओएम में यह भी कहा गया था:
चार्ज मेमो/चार्ज शीट जारी होने या अधिकारी को निलंबित किए जाने के बाद ही सीलबंद लिफाफे की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। उस चरण से पहले प्रारंभिक जांच लंबित रहने पर सीलबंद लिफाफे की प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा:
"उपर्युक्त स्थिति पर विचार करते हुए कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक/आपराधिक कार्यवाही तभी शुरू की जा सकती है, जब अनुशासनात्मक कार्यवाही में कर्मचारी को आरोप-पत्र जारी किया जाता है या सक्षम न्यायालय में आपराधिक अभियोजन के लिए आरोप-पत्र दाखिल किया जाता है। आरोप-पत्र/आरोप-पत्र जारी होने के बाद ही सीलबंद लिफाफे की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। जांच लंबित रहने और अभियोजन स्वीकृति मिलने के कारण अधिकारी सीलबंद लिफाफे की प्रक्रिया को अपनाने में सक्षम नहीं होंगे।"
तदनुसार, केंद्र सरकार की अपील खारिज कर दी गई। सीलबंद लिफाफा खोलने पर न्यायालय ने पाया कि DPC ने प्रतिवादी को पदोन्नति के लिए "योग्य" माना है। इसलिए परिणामी कदम उठाए जाने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल: भारत संघ बनाम डोली लॉई