अदालत की गरिमा बनाए रखने के लिए वकील को मना करने पर दलीलें रोकना जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

Amir Ahmad

29 Oct 2025 10:44 AM IST

  • अदालत की गरिमा बनाए रखने के लिए वकील को मना करने पर दलीलें रोकना जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि एक बार जब बेंच अपना मन बता दे और वकील से आगे की दलीलें न देने का अनुरोध करे तो उस निर्देश का सम्मान किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि इसके बाद लगातार जोर देना किसी उद्देश्य को पूरा नहीं करता और यह अदालती कार्यवाही की गरिमा को प्रभावित करता है।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने 28 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा,

    "एक बार जब कोर्ट अपना मन बता देता है और वकील से आगे की दलीलें देने से परहेज करने का अनुरोध करता है तो इसका सम्मान किए जाने की उम्मीद की जाती है।"

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आदेश उचित विचार-विमर्श के बाद ही पारित किए जाते हैं और मामलों को सावधानीपूर्वक जांच के बिना खारिज नहीं किया जाता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक वकील का अपने मुवक्किल और कोर्ट के प्रति जो कर्तव्य है, उसमें संतुलन होना चाहिए। कोर्ट का व्यवस्थित कामकाज सबसे अच्छी तरह तभी सुनिश्चित होता है, जब बेंच और बार (वकील) तालमेल और आपसी सम्मान के साथ आगे बढ़ते हैं।"

    यह टिप्पणी उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग (SEC) द्वारा दायर एक विविध आवेदन (मिसलेनियस एप्लीकेशन) पर सुनवाई के दौरान आई। SEC ने एक पिछले आदेश में उस पर लगाए गए 2 लाख के जुर्माने को वापस लेने और रिकॉर्ड की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने की मांग की थी, जिसके साथ उनकी विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज कर दी गई।

    दरअसल, पिछली सुनवाई के दौरान SEC के वकील ने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली एसएलपी पर दलीलें देना जारी रखा था।

    खंडपीठ ने लगभग छह बार संकेत दिया कि वह हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने की इच्छुक नहीं है। फिर भी वकील लगातार दलीलें देने पर अड़े रहे। इस आचरण पर ध्यान देते हुए कोर्ट ने एसएलपी को 2 लाख के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया।

    बाद में SEC ने माफी मांगते हुए आवेदन दायर किया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सीनियर एडवोकेट विकास सिंह और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट विपिन नायर ने भी पीठ के समक्ष उपस्थित होकर आश्वासन दिया कि वकील भविष्य में ऐसा आचरण नहीं दोहराएंगे।

    माफी स्वीकार करते हुए बेंच ने पिछली टिप्पणी और जुर्माना दोनों को हटाने का फैसला किया हालांकि यह चेतावनी दी कि ऐसा आचरण दोबारा नहीं होना चाहिए। इस फैसले से अदालत की कार्यवाही में अनुशासन और सम्मान बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया गया।

    Next Story