सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामले में समझौते के तहत हासिल किए गए फ्लैट के लिए पत्नी को स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान करने से छूट दी

Amir Ahmad

11 March 2025 6:07 AM

  • सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामले में समझौते के तहत हासिल किए गए फ्लैट के लिए पत्नी को स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान करने से छूट दी

    सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को पंजीकरण अधिनियम 1908 (अधिनियम) के तहत स्टाम्प ड्यूटी के भुगतान से छूट दी, जिसे वैवाहिक विवाद में अपने पति के साथ समझौते के तहत फ्लैट मिला था।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें पति द्वारा दायर तलाक का मामला स्थानांतरित करने की याचिका के लंबित रहने के दौरान पति और पत्नी ने मध्यस्थता कार्यवाही में आपसी सहमति से अपने विवाह को समाप्त करने पर सहमति जताई थी।

    मध्यस्थता कार्यवाही के दौरान बॉम्बे में फ्लैट पर अपने-अपने अधिकारों को लेकर पक्षों के बीच विवाद पैदा हो गया, क्योंकि दोनों ने इसकी खरीद में योगदान देने का दावा किया। नतीजतन एक समझौता हुआ, जिसमें याचिकाकर्ता-पति ने प्रतिवादी-पत्नी के पक्ष में फ्लैट पर अपने अधिकारों को छोड़ने पर सहमति व्यक्त की, जिसने बदले में गुजारा भत्ता के किसी भी दावे को छोड़ने पर सहमति व्यक्त की।

    न्यायालय के विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या विचाराधीन फ्लैट का अनन्य स्वामित्व प्रतिवादी-पत्नी के नाम पर स्टाम्प शुल्क का भुगतान किए बिना ट्रांसफर किया जा सकता है।

    हालिया मामले मुकेश बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (2024) पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने सकारात्मक उत्तर देते हुए कहा कि चूंकि फ्लैट समझौते का विषय था। न्यायालय के समक्ष कार्यवाही का हिस्सा था इसलिए हस्तांतरण अधिनियम की धारा 17(2)(vi) के तहत स्टाम्प शुल्क से मुक्त होगा।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    “स्पष्ट रूप से विचाराधीन फ्लैट समझौते का विषय है। परिणामस्वरूप यह इस न्यायालय के समक्ष कार्यवाही का हिस्सा है। इसलिए पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17(2)(vi) द्वारा प्रदान किया गया, बहिष्करण लागू होगा और प्रतिवादी-पत्नी के अनन्य नाम में विचाराधीन फ्लैट का पंजीकरण स्टाम्प शुल्क के भुगतान से मुक्त होगा।”

    इसके परिणामस्वरूप न्यायालय ने संबंधित उप-पंजीयक को प्रतिवादी-पत्नी के अनन्य नाम पर फ्लैट पंजीकृत करने का निर्देश दिया।

    भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत आवेदन स्वीकार किए गए। तदनुसार पक्षों की शादी आपसी सहमति से भंग की जाती है।

    केस टाइटल: अरुण रमेशचंद आर्य बनाम पारुल सिंह

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