Payment Of Gratuity Act | ग्रेच्युटी जब्ती के लिए आपराधिक मामले में दोषसिद्धि आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Amir Ahmad

18 Feb 2025 6:02 AM

  • Payment Of Gratuity Act | ग्रेच्युटी जब्ती के लिए आपराधिक मामले में दोषसिद्धि आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    यदि कर्मचारी को ऐसे कदाचार के लिए बर्खास्त किया जाता है जो नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध है तो ग्रेच्युटी जब्त की जा सकती है।

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के तहत ग्रेच्युटी जब्ती के लिए आपराधिक दोषसिद्धि की आवश्यकता नहीं है। यदि कर्मचारी का कदाचार स्वयं नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध है तो ग्रेच्युटी जब्त की जा सकती है।

    कोर्ट ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और अन्य बनाम सी.जी. अजय बाबू (2018) के मामले में निर्धारित कानून को स्पष्ट करते हुए कहा कि सी.जी. अजय बाबू के मामले में की गई टिप्पणी कि आपराधिक दोषसिद्धि के बाद ही ग्रेच्युटी जब्त की जा सकती है, एक ऐसी टिप्पणी थी जिसका कोई बाध्यकारी प्रभाव नहीं था।

    जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने इस बात पर विचार किया कि क्या नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के कारण नौकरी से निकाले जाने पर ग्रेच्युटी जब्त की जा सकती है, भले ही कोई आपराधिक दोषसिद्धि या कार्यवाही न हुई हो।

    सकारात्मक उत्तर देते हुए जस्टिस चंद्रन द्वारा लिखे गए फैसले में धारा 4(6)(बी) के उप-खंड (ii) की व्याख्या की गई, जो कि अगर किसी अपराधी कर्मचारी को किसी ऐसे कार्य के लिए नौकरी से निकाला जाता है जो नैतिक अधमता से जुड़े अपराध का गठन करता है तो ग्रेच्युटी को पूरी तरह या आंशिक रूप से जब्त करने में सक्षम बनाता है अगर अपराध उसके रोजगार के दौरान किया गया हो।

    प्रावधान के तहत अपराध शब्द की व्याख्या करते हुए न्यायालय ने कहा,

    “सामान्य खंड अधिनियम में परिभाषित अपराध का अर्थ है किसी भी कानून द्वारा दंडनीय कोई भी कार्य या चूक और इसके लिए दोषसिद्धि की आवश्यकता नहीं है; जो निश्चित रूप से केवल आपराधिक कार्यवाही में दिए गए साक्ष्य के आधार पर ही हो सकता है। आपराधिक कार्यवाही में अपेक्षित प्रमाण का मानक अनुशासनात्मक कार्यवाही में अपेक्षित मानक से काफी अलग है। पूर्व को उचित संदेह से परे प्रमाणके उच्च मानक द्वारा विनियमित किया जाता है, जबकि बाद वाले को संभावनाओं की अधिकता' द्वारा नियंत्रित किया जाता है।"

    न्यायालय ने कहा कि ग्रेच्युटी अधिनियम नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के रूप में कदाचार के लिए ग्रेच्युटी को जब्त करने की अनुमति देता है बिना आपराधिक सजा की आवश्यकता के। अधिनियम के तहत ग्रेच्युटी जब्त करने का प्रावधान नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के लिए आपराधिक कार्यवाही में दोषसिद्धि की बात नहीं करता है।

    इसके विपरीत अधिनियम में ऐसी जब्ती का प्रावधान है। ऐसे मामलों में जहां दोषी कर्मचारी को कदाचार के लिए बर्खास्त किया जाता है, जो नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध है।

    अदालत ने कहा,

    “अनुशासनात्मक प्राधिकारी या नियुक्ति प्राधिकारी के लिए एकमात्र आवश्यकता यह तय करना है कि क्या कदाचार, सामान्य परिस्थितियों में नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध हो सकता है, ग्रेच्युटी जब्त करने वाले प्राधिकारी को यह तय करने का विवेक दिया गया कि जब्ती पूरी होनी चाहिए या देय ग्रेच्युटी का केवल हिस्साजो कदाचार की गंभीरता पर निर्भर करेगा।”

    न्यायालय ने माना,

    “वर्तमान मामले में यह साबित हो गया कि याचिकाकर्ता ने अपनी वास्तविक जन्मतिथि छिपाई। नियोक्ता द्वारा रोजगार के उद्देश्य से प्रस्तुत किए गए जाली प्रमाण पत्र के माध्यम से नियोजित धोखाधड़ी पर आपराधिक कार्यवाही शुरू करने में विफलताजब्ती के खिलाफ नहीं है। जाहिर है, जैसा कि प्रावधान से पता चलता है। अगर कथित और साबित किया गया कदाचार नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध हैतो आपराधिक कार्यवाही में दोषसिद्धि की कोई आवश्यकता नहीं है। MSRTC द्वारा की गई अपीलों में भी यही तर्क लागू होता है, जहां दोषी कर्मचारियों, MSRTC द्वारा संचालित स्टेज कैरिज में कंडक्टरों को यात्रियों से एकत्र किए गए किराए के दुरुपयोग में लिप्त पाया गया। दुरुपयोग निश्चित रूप से नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध है।”

    उपरोक्त के संदर्भ में न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया।

    केस टाइटल: वेस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड बनाम मनोहर गोविंदा फुलजेले

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