डिज़ाइन उल्लंघन पर पासिंग ऑफ़ के मुकदमों को बनाए रखने के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कीं

Amir Ahmad

14 Nov 2025 3:12 PM IST

  • डिज़ाइन उल्लंघन पर पासिंग ऑफ़ के मुकदमों को बनाए रखने के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कीं

    सुप्रीम कोर्ट ने क्रॉक्स इंक. यूएसए द्वारा दायर पासिंग ऑफ़ मुकदमों की वैधता को चुनौती देने वाली बाटा इंडिया लिमिटेड और अन्य जूता निर्माताओं की याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दीं। ये मुकदमे क्रॉक्स के रजिस्टर्ड डिज़ाइनों की कथित नकल और व्यापारिक स्वरूप (ट्रेड ड्रेस) की नकल के आधार पर दायर किए गए।

    जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की खंडपीठ ने 1 जुलाई को दिए दिल्ली हाईकोर्ट के डिवीज़न बेंच के उस फैसले में हस्तक्षेप से इनकार किया, जिसमें कहा गया था कि डिज़ाइंस एक्ट के तहत रजिस्टर्ड किसी डिज़ाइन पर भी पासिंग ऑफ़ का दावा किया जा सकता है। इसी आदेश को चुनौती देती लिबर्टी शूज़ लिमिटेड की याचिका भी खारिज कर दी गई।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट की सिंगल बेंच मुकदमों की सुनवाई आगे बढ़ाए और डिवीज़न बेंच के किसी अवलोकन से प्रभावित न हो। साथ ही कानून के प्रश्न को भविष्य के लिए खुला रखा गया।

    सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट नीरज किशन कौल ने तर्क दिया कि केवल डिज़ाइन उल्लंघन के आधार पर पासिंग ऑफ़ कार्रवाई कायम नहीं रह सकती। उन्होंने कहा कि क्रॉक्स के दावे डिज़ाइंस एक्ट के उल्लंघन से आगे नहीं बढ़ते, इसलिए स्वतंत्र पासिंग ऑफ़ मुकदमे की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

    खंडपीठ ने इसपर टिप्पणी करते हुए कहा कि कार्ल्सबर्ग ब्रुअरीज बनाम सोम डिस्टिलरीज़ के फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट की फुल बेंच पहले ही यह मान चुकी है कि पासिंग ऑफ़ और डिज़ाइन उल्लंघन के दावे एक ही मुकदमे में जोड़े जा सकते हैं। कौल ने जवाब दिया कि कार्ल्सबर्ग का फैसला ही यह दर्शाता है कि केवल डिज़ाइन उल्लंघन के आधार पर अकेला पासिंग ऑफ़ दावा नहीं टिकेगा।

    लिबर्टी शूज़ की ओर से सीनियर एडवोकेट सैकृष्ण राजगोपाल ने कहा कि पासिंग ऑफ़ कार्रवाई तभी टिकेगी, जब डिज़ाइन उल्लंघन से अलग अतिरिक्त तत्व प्रस्तुत किए जाएं। उनके अनुसार, क्रॉक्स की याचिका में डिज़ाइंस एक्ट के उल्लंघन से परे कोई अलग तत्व नहीं है। उन्होंने यह भी चेताया कि इस रास्ते का उपयोग कर कंपनियाँ 15 वर्ष की सीमित सुरक्षा को स्थायी बनाने का प्रयास कर सकती हैं।

    खंडपीठ ने इस पर कहा कि भारत में क्रॉक्स के पास इस आकृति (डिज़ाइन) का ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन ही नहीं है बल्कि केवल डिज़ाइन रजिस्टर्ड है।

    क्रॉक्स की ओर से सीनियर एडवोकेट अखिल सिब्बल ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि पासिंग ऑफ़ एक सामान्य विधि पर आधारित अधिकार है, जिसे डिज़ाइंस एक्ट रोकता नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि यह दावा उपभोक्ता भ्रम और अर्जित प्रतिष्ठा (गुडविल) की रक्षा के लिए होता है, जो रजिस्ट्रेशन से नहीं बल्कि उपयोग से उत्पन्न होता है।

    सिब्बल ने कहा कि 2004 से क्रॉक्स ने अपने ट्रेड ड्रेस के माध्यम से विशिष्ट पहचान बनाई, जिसे बाद में कई कंपनियों ने नकल करना शुरू किया। मेरा दावा केवल सामान्य विधि के अधिकार पर आधारित है

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिकाएं खारिज किए जाने के साथ अब क्रॉक्स के छहों मुकदमे जो लगभग दस वर्षों से रुके हुए थे, दिल्ली हाईकोर्ट में आगे बढ़ेंगे।

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