अनुबंध पर नियुक्त सरकारी वकील को नियमित नियुक्ति का अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
4 July 2025 9:55 AM

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अनुबंध पर कार्यरत लोक अभियोजक (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) की नियमितीकरण की याचिका खारिज कर दी।
जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस जॉयमल्या बागची की खंडपीठ ने कहा कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता की नियमित नियुक्ति की मांग वाली याचिका खारिज कर कोई गलती नहीं की।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता स्वयं जिलाधिकारी, पुरुलिया से अनुबंध पर काम जारी रखने की अनुमति मांगता रहा ताकि आजीविका चला सके।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
“याचिकाकर्ता ऐसा कोई वैधानिक या संवैधानिक अधिकार स्थापित नहीं कर सका, जिससे उसे नियमितीकरण का लाभ मिल सके। अतिरिक्त लोक अभियोजकों की नियुक्ति प्रक्रिया दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और राज्य में लागू नियमों के तहत एक संरचित प्रक्रिया है। इस कारण अनुबंध पर कार्यरत व्यक्ति की नियमितीकरण की मांग कानून के विपरीत होगी।”
अतः सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका (SLP) को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें कोई दम नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता को 20 जून, 2014 को जिला मजिस्ट्रेट, पुरुलिया ने असिस्टेंट पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के रूप में अनुबंध पर नियुक्त किया ताकि एक रिक्त पद को भरा जा सके। उसे प्रति पेशी ₹459 फीस तय की गई थी (अधिकतम दो मामलों के लिए प्रतिदिन)।
बाद में उसे रघुनाथपुर के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में भी मामले सौंपे गए। उसने फीस वृद्धि की मांग की और सेवा नियमित करने के लिए राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (SAT) में याचिका दाखिल की।
ट्रिब्यूनल ने दिसंबर, 2022 में उसकी याचिका स्वीकार कर ली थी लेकिन न्याय विभाग ने जून 2023 में दावा खारिज कर दिया।
फिर उसने दोबारा ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की लेकिन ट्रिब्यूनल ने दोहराया कि उसकी नियुक्ति केवल अनुबंध पर थी और नियमित पद पर नियुक्त व्यक्ति से समान वेतन या नियमितीकरण की मांग कानूनन टिकाऊ नहीं है।
हाईकोर्ट ने भी यही दृष्टिकोण अपनाया और कहा कि याचिकाकर्ता फीस में वृद्धि की मांग के लिए सक्षम प्राधिकरण से अनुरोध कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का निर्णय बरकरार रखा।