आरोप पत्र दाखिल करने और न्यायालय द्वारा संज्ञान लिए जाने के बाद Police द्वारा अभियुक्त को गिरफ्तार करना कोई मतलब नहीं रखता : सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
20 Jan 2025 8:18 AM

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय द्वारा आरोप पत्र का संज्ञान लिए जाने के बाद जांच के दौरान गिरफ्तार न किए गए अभियुक्त को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने की प्रथा की निंदा की।
न्यायालय को बताया गया कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा इस तरह की प्रथा अपनाई जा रही है तो उसने आश्चर्य व्यक्त करते हुए इस प्रथा को असामान्य बताया। न्यायालय ने कहा कि इस तरह की प्रथा का कोई मतलब नहीं है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने टिप्पणी की,
"याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि उत्तर प्रदेश राज्य में एक प्रथा है कि आरोप पत्र दाखिल किए जाने और न्यायालय द्वारा आरोप पत्र का संज्ञान लिए जाने के बाद गिरफ्तारी की जाती है। हम इस असामान्य प्रथा के बारे में कुछ नहीं कहना चाहते सिवाय इसके कि इसका कोई मतलब नहीं है।"
खंडपीठ ने आगे कहा,
"हमारा मानना है कि एक बार जांच पूरी हो जाने और आरोप-पत्र दाखिल हो जाने के बाद आरोपी को संबंधित अदालत में पेश होने के लिए कहा जाना चाहिए। निचली अदालत की संतुष्टि के लिए जमानत देनी चाहिए। अगर जांच अधिकारी याचिकाकर्ता से पूछताछ करना चाहता था तो वह जांच के दौरान ही उसे गिरफ्तार कर सकता था। अब औपचारिक गिरफ्तारी करने का कोई मतलब नहीं है।"
खंडपीठ ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत मामले में एक व्यक्ति को जमानत देते हुए ये टिप्पणियां कीं। इसने नोट किया कि जांच के दौरान याचिकाकर्ता को कभी गिरफ्तार नहीं किया गया। आरोप-पत्र दाखिल किया गया, जिस पर निचली अदालत ने संज्ञान लिया है। इस पृष्ठभूमि में पीठ ने याचिकाकर्ता को जमानत दे दी।
सिद्धार्थ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021) में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आरोप-पत्र दाखिल करने के समय आरोपी को गिरफ्तार करने की पुलिस की कोई बाध्यता नहीं थी।
सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई (2021) में न्यायालय ने आरोप-पत्र दाखिल होने पर उन आरोपियों की नियमित गिरफ्तारी को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए, जिन्हें जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया या जिन्होंने जांच में सहयोग किया था।
बाद में कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धार्थ और सतेंद्र कुमार अंतिल के फैसलों का पालन न करने वाली ट्रायल कोर्ट और जांच एजेंसियों पर नाराजगी जताई है। तरसेम लाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2024) में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोप-पत्र का संज्ञान लेने के बाद ईडी किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकता।
केस टाइटल: मुशीर आलम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य