घर में सभी लोगों की सहमति के बिना सीसीटीवी नहीं लगाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट से जताई सहमति
Amir Ahmad
12 May 2025 11:17 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने (9 मई) कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें कहा गया था कि घर में सभी लोगों की सहमति के बिना सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए जा सकते।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया।
यह विवाद दो भाइयों के बीच था, जिसमें से एक ने दूसरे भाई द्वारा उनकी सहमति के बिना उनके साझा भवन के आवासीय हिस्से में सीसीटीवी कैमरे लगाने पर आपत्ति जताई थी।
सीसीटीवी को कथित तौर पर कीमती संग्रहों पर निगरानी रखने और आवास में संरक्षित मूल्यवान संपत्ति और दुर्लभ प्राचीन वस्तुओं की सुरक्षा के लिए लगाया जाना था।
हाईकोर्ट ने माना कि सह-निवासियों या सह-ट्रस्टियों की सहमति के बिना आवास के आवासीय हिस्से के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाना उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य और उदय कुमार की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा,
"जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी (रिटायर) और अन्य बनाम भारत संघ, एआईआर 2017 एससी 4161 में, सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि प्रत्येक व्यक्ति के निजता के अधिकार की गारंटी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दी गई। इसे संरक्षित किया गया, क्योंकि यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक अभिन्न अंग है। किसी व्यक्ति की गरिमा, स्वायत्तता और पहचान का सम्मान किया जाना चाहिए और किसी भी स्थिति में इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। निजता के अधिकार को नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा में भी एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई। यह अधिकार व्यक्ति के आंतरिक क्षेत्र की रक्षा के लिए मौलिक है। इसलिए हमारा मानना है कि सह-ट्रस्टी/अपीलकर्ता की सहमति के बिना आवासीय भाग के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाना और उनका संचालन करना, संपत्ति के स्वतंत्र आनंद के उसके अधिकार पर प्रतिबंध लगाने और अपीलकर्ता के निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।”
हाईकोर्ट ने आवासीय क्षेत्र में लगाए गए 5 सीसीटीवी कैमरों को हटाने का निर्देश दिया, क्योंकि यह अपीलकर्ता के संपत्ति और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन कर रहा था।
टाइटल : इंद्रनील मलिक और अन्य बनाम शुवेंद्र मलिक | एसएलपी (सी) 12384/2025

