दूसरी विरोध याचिका की स्वीकार्यता इस बात पर निर्भर करती है कि निगेटिव फाइनल रिपोर्ट के खिलाफ पहली शिकायत कैसे खारिज की गई: सुप्रीम कोर्ट

Amir Ahmad

6 Nov 2024 1:40 PM IST

  • दूसरी विरोध याचिका की स्वीकार्यता इस बात पर निर्भर करती है कि निगेटिव फाइनल रिपोर्ट के खिलाफ पहली शिकायत कैसे खारिज की गई: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मजिस्ट्रेट का मानना है कि दोनों शिकायतों का मूल अलग-अलग है तो निगेटिव फाइनल रिपोर्ट/चार्जशीट के खिलाफ दूसरी शिकायत की स्वीकार्यता पर कोई रोक नहीं है।

    समता नायडू और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य में न्यायालय ने कानून की स्थिति तय की कि अगर शिकायत का पहले किया गया निपटारा गुण-दोष के आधार पर था तो पहली शिकायत में उठाए गए लगभग समान तथ्यों पर दूसरी शिकायत स्वीकार्य नहीं होगी।

    समता नायडू के मामले से प्रेरणा लेते हुए जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने स्पष्ट किया कि समान तथ्यों पर दूसरी शिकायत पर विचार करने पर कोई रोक नहीं है लेकिन इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में ही स्वीकार किया जाएगा, यानी जब पहले के खारिज करने के आदेश में कोई कमी हो।

    यह देखते हुए कि पहले की शिकायत खारिज करने के आदेश में कोई खामी नहीं थी और न ही शिकायतकर्ता द्वारा खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई, अदालत ने कहा कि पहली शिकायत में उल्लिखित आरोपों के एक ही सेट पर दूसरी शिकायत दर्ज करने से दूसरी शिकायत गैर-सहायक हो जाएगी।

    अदालत ने कहा,

    "इसके बाद 20.07.2011 को दूसरी शिकायत दर्ज की गई, जिसमें 11.11.2010 की शिकायत को दोहराया गया, बल्कि उसे फिर से पेश किया गया। 05.05.2011 की विरोध याचिका के माध्यम से वस्तुतः लगाए गए आरोपों को जोड़ा गया कि मूल शिकायत के अनुसार जांच लापरवाही से की गई।"

    यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जांच के खिलाफ उक्त आरोप को पहले भी 06.06.2011 के आदेश के अनुसार खारिज की गई, जिसमें कहा गया कि जांच में कोई कमी नहीं है। इसके अलावा यह आगे की जांच के लायक नहीं है। अब 11.11.2010 की पहली शिकायत और 20.07.2011 की दूसरी शिकायत की तुलना से पता चलता है कि उनमें एक ही आरोपी के खिलाफ वही आरोप हैं जैसा कि सीजेएम ने 12.07.2012 के आदेश में देखा है।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि पहले की शिकायत को खारिज न करना CrPC की धारा 203 के तहत हर मामले में शिकायतकर्ता को दूसरी शिकायत दर्ज करने का अधिकार केवल इसलिए नहीं मिल जाता, क्योंकि कुछ निर्णयों में यह माना गया कि गुण-दोष के आधार पर पहले की शिकायत खारिज किए जाने के बाद दूसरी शिकायत को बनाए रखना संभव नहीं होगा।

    न्यायालय ने कहा कि यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा, यानी कि पहले की शिकायत को पहली बार में कैसे खारिज किया गया।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    “केवल इसलिए कि इस न्यायालय ने ऐसे कुछ निर्णयों में माना है कि जब मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 202 के तहत जांच की और गुण-दोष के आधार पर शिकायत को खारिज कर दिया तो उन्हीं तथ्यों के आधार पर दूसरी शिकायत को बनाए रखना संभव नहीं होगा, जब तक कि बहुत ही असाधारण परिस्थितियाँ न हों यह नहीं समझा जा सकता कि उन सभी मामलों में जहां मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत पर CrPc की धारा 202 के तहत कार्यवाही नहीं की गई। CrPc की धारा 203 के स्तर पर खारिज नहीं किया गया, दूसरी शिकायत या दूसरी विरोध याचिका को बनाए रखना संभव होगा।”

    अदालत ने कहा,

    "संक्षेप में दूसरी शिकायत की स्वीकार्यता या अन्यथा इस बात पर निर्भर करेगी कि पहले की शिकायत को पहली बार में कैसे खारिज किया गया।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    इस मामले में शिकायतकर्ता ने मजिस्ट्रेट को पुलिस द्वारा प्रस्तुत निगेटिव अंतिम रिपोर्ट के खिलाफ विरोध याचिका दायर की थी। विरोध याचिका को CrPC की धारा 2(डी) के तहत शिकायत के रूप में माना गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि जांच ठीक से नहीं की गई और इसका संज्ञान लेने की प्रार्थना की गई।

    मजिस्ट्रेट ने विरोध याचिका यह कहते हुए खारिज की कि जांच में कोई कमी नहीं है। पहली शिकायत खारिज करने को चुनौती देने के बजाय शिकायतकर्ता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष पहली शिकायत में बताए गए आधारों पर आरोप लगाते हुए दूसरी शिकायत दायर की। मजिस्ट्रेट ने दूसरी शिकायत को कानून के तहत गैर-सुनवाई योग्य मानते हुए खारिज कर दिया।

    दूसरी शिकायत खारिज करने के मजिस्ट्रेट के फैसले में सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया, जिस कारण आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वर्तमान अपील दायर की।

    निर्णय

    हाईकोर्ट का निर्णय खारिज करते हुए जस्टिस सीटी रविकुमार द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया कि चूंकि दोनों शिकायतों में आरोपों की प्रकृति एक जैसी थी और दूसरी शिकायत में ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति नहीं थी, जिसके लिए अदालत को हस्तक्षेप करना पड़े, इसलिए मजिस्ट्रेट द्वारा दूसरी शिकायत खारिज करने का आदेश उचित था।

    अदालत ने कहा,

    "इस मामले में 05.05.2011 की विरोध याचिका और 20.07.2011 की दूसरी शिकायत के अवलोकन से पता चलता है कि 11.11.2010 की शिकायत के आधार पर दर्ज एफआईआर में जांच के अनुसरण में दायर फाइनल रिपोर्ट की स्वीकृति के बाद दायर की गई दूसरी शिकायत, वह भी नाराज़ी याचिका पर विचार करने और शिकायतकर्ता (इसमें दूसरा प्रतिवादी) को सुनने के बाद 20.07.2011 की दूसरी शिकायत 11.11.2010 की पहली शिकायत को फिर से प्रस्तुत करते हुए दायर की गई। कहा गया कि उक्त शिकायत की उचित जांच नहीं की गई और 20.07.2011 की दूसरी शिकायत पर कार्रवाई की जानी चाहिए। वास्तव में, निर्विवाद स्थिति यह है कि 11.11.2010 की मूल शिकायत और 20.07.2011 की दूसरी शिकायत का मूल एक ही है।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "20.07.2011 की दूसरी शिकायत की जांच से पता चलता है कि उपर्युक्त निर्णयों के अनुसार स्वीकार्य कोई भी स्थिति इस मामले में मौजूद नहीं है, जिससे उक्त शिकायत को बनाए रखा जा सके। जब ऐसी स्थिति है तो सत्र न्यायाधीश और हाईकोर्ट द्वारा चीफ जस्टिस द्वारा 12.07.2012 को पारित आदेश में हस्तक्षेप करना उचित नहीं था, जिसमें दूसरी शिकायत को कानून के तहत बनाए रखने योग्य नहीं माना गया और आगे निर्देश जारी किए गए।"

    अपील को अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: सुब्रत चौधरी @ संतोष चौधरी और अन्य बनाम असम राज्य और अन्य

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