सुप्रीम कोर्ट ने दवा निर्माण कंपनी के पूर्व निदेशक के खिलाफ उनके इस्तीफे के बाद जब्त घटिया दवाओं का मामले खारिज किया
Amir Ahmad
26 Feb 2025 7:11 AM

सुप्रीम कोर्ट ने दवा निर्माण कंपनी के पूर्व निदेशक के खिलाफ औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत मामला खारिज कर दिया, जिस पर कथित तौर पर घटिया दवा बनाने के आरोप में छापा पड़ा था, यह देखते हुए कि निदेशक ने छापेमारी से पहले कंपनी से इस्तीफा दे दिया था।
कोर्ट ने माना कि निदेशक को उनके इस्तीफे के बाद उत्पन्न होने वाली कंपनी के दायित्वों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। चूंकि निदेशक ने 2009 में इस्तीफा दे दिया था, जबकि छापेमारी और दवा जब्ती 2010 में हुई थी, इसलिए कोर्ट ने अपीलकर्ता को अधिनियम के तहत आरोपों से मुक्त कर दिया।
15.06.2010 को औषधि निरीक्षक, गोंडा ने धरमपुर भगवतीगंज, बलरामपुर में स्थित मेसर्स जय मेडिकल स्टोर पर छापा मारा और मेसर्स द्वारा निर्मित 'फेना' टैबलेट का सैंपल लिया। एल्मैक रेमेडीज प्राइवेट लिमिटेड (एलमैक)। दवाओं के एकत्रित सैंपल की जांच के बाद दिनांक 21.07.2011 को रिपोर्ट तैयार की गई, जिसके अनुसार उक्त दवाएं निर्धारित मानक से कम पाई गईं। औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 की धारा 17 के तहत मिलावटी और नकली दवाओं की श्रेणी में आती हैं।
याचिकाकर्ता/अपीलकर्ता औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के नियम 71 के तहत वैधानिक आवश्यकता के अनुसार 01.07.2006 से एल्मैक का विनिर्माण रसायनज्ञ था। याचिकाकर्ता एल्मैक के निदेशकों में से एक भी था। याचिकाकर्ता ने दिनांक 15.12.2008 को त्यागपत्र देकर एल्मैक में विनिर्माण रसायनज्ञ के पद से इस्तीफा दे दिया और दिनांक 15.01.2009 को अपने पत्र द्वारा औषधि नियंत्रण एवं लाइसेंसिंग प्राधिकरण को इसकी सूचना दी।
याचिकाकर्ता ने 01.06.2009 से एल्मैक के निदेशक पद से भी इस्तीफा दिया और कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार इस आशय का अपेक्षित फॉर्म 32 जारी किया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अधिनियम के तहत FIR रद्द करने की उनकी याचिका खारिज करने के बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
"हमें पता चला है कि फॉर्म 32 अपीलकर्ता द्वारा रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के समक्ष दाखिल किया गया, जिसमें स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया कि उनके इस्तीफे के कारण वह 01.06.2009 से कंपनी से जुड़े नहीं रहे। यह स्पष्ट रूप से इस तथ्य को स्थापित करता है कि वह अब कंपनी के निदेशक मंडल के सदस्य नहीं हैं।”
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि एल्मैक विनिर्माण लाइसेंस (वैध 2006-2011) पर अपीलकर्ता का नाम होने से वह स्वतः ही घटिया दवाओं के लिए उत्तरदायी हो जाता है, भले ही उसने घटिया दवाओं के उत्पादन से पहले ही इस्तीफा दे दिया हो।
अदालत ने कहा,
“एल्मैक को लाइसेंस जारी किया गया हो सकता है और परिणामस्वरूप यहां अपीलकर्ता का नाम उक्त लाइसेंस में दर्ज किया गया, जो 22.07.2006 से 21.07.2011 की अवधि के लिए था, यह अनुमान लगाया जाता है कि एक बार अपीलकर्ता का एल्मैक के साथ कोई संबंध समाप्त हो जाने के बाद वह एल्मैक में विनिर्माण रसायनज्ञ के रूप में काम करना जारी नहीं रख सकता। शिकायतकर्ता या प्रतिवादी-राज्य द्वारा कोई विपरीत सामग्री प्रस्तुत नहीं की गई, जिससे यह दावा किया जा सके कि अपीलकर्ता ने फॉर्म 32 दाखिल करने के बावजूद एल्मैक के साथ अपना संबंध जारी रखा, जिसमें कहा गया कि वह 01.06.2009 से कंपनी का निदेशक नहीं रहा है।”
अदालत ने आदेश दिया,
“इन परिस्थितियों में हमें लगता है कि औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 18/27 के साथ औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप और अपराध पूरी तरह से अवैध और स्थापित तथ्यों के विपरीत थे। इसलिए हम आरोपित आदेश खारिज करते हैं और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपीलकर्ता द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करते हैं।”
तदनुसार अपील स्वीकार की गई।
केस टाइटल: यशपाल चैल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।