सुप्रीम कोर्ट ने दहेज निषेध अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की

Amir Ahmad

3 Feb 2025 10:50 AM

  • सुप्रीम कोर्ट ने दहेज निषेध अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2, 3, 4 और 8A की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की, क्योंकि यह धाराएं पुरुषों के लिए प्रतिकूल हैं।जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया।

    सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि वह कानूनों की अमान्यता के बारे में चिंतित हैं।

    उन्होंने आगे कहा कि विवादित प्रावधान पुरुषों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं। जवाब में जस्टिस गवई ने पूछा कि याचिकाकर्ता कौन है।

    वकील ने जवाब में कहा,

    "मैं एक जनहितैषी व्यक्ति हूं।"

    याचिका खारिज करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता को संसद का दरवाजा खटखटाने को कहा।

    संक्षेप में PIL रूपशी सिंह नामक व्यक्ति द्वारा दायर की गई, जिसमें भारत संघ के साथ-साथ प्रधानमंत्री को भी पक्षकार बनाया गया। इसने दहेज निषेध अधिनियम की धारा 2, 3, 4 और 8ए पर हमला किया, जो दहेज की परिभाषा (धारा 2), दहेज देने या लेने के लिए दंड (धारा 3), दहेज मांगने के लिए दंड (धारा 4) और कुछ मामलों में सबूत का बोझ (धारा 8ए) से संबंधित है।

    हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दहेज विरोधी कानूनों और घरेलू क्रूरता के फैसलों की समीक्षा की मांग करने वाली एक और जनहित याचिका खारिज की। अतुल सुभाष की कथित रूप से अपनी पत्नी द्वारा उत्पीड़न के कारण दुखद मौत के बाद इस मामले में याचिकाकर्ता ने न्यायालय से यह सुनिश्चित करने की मांग की कि पतियों (और उनके परिवार के सदस्यों) को घरेलू हिंसा के झूठे मामलों और दहेज कानूनों के तहत परेशान न किया जाए। हालांकि, न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि कानून बनाना संसद का काम है।

    केस टाइटल: रूपशी सिंह बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 68/2025

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