न्यायपालिका को विशिष्ट विशेषज्ञता वाले प्रशासनिक निर्णयों में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
12 March 2024 8:04 AM GMT
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पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक निर्णयों में संयम बरतने के न्यायिक सिद्धांत को दोहराया।
हाईकोर्ट ने अपने उक्त फैसले में सीनियर आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (पीएआर) के संबंध में मुख्यमंत्री एमएल खट्टर (स्वीकार्य प्राधिकारी की) की टिप्पणी और समग्र ग्रेड को खारिज कर दिया गया था।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने इसे संविधान का मूलभूत सिद्धांत बताते हुए कहा,
"न्यायपालिका को संयम बरतना चाहिए और किसी भी गड़बड़ी के अभाव में विशेष विशेषज्ञता वाले कार्यपालिका के प्रशासनिक निर्णयों में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना चाहिए।"
इस मुद्दे का विश्लेषण करते हुए कि क्या हाईकोर्ट ट्रिब्यूनल के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है, बेंच ने सबसे पहले केयरटेल इन्फोटेक लिमिटेड बनाम हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन का जिक्र करते हुए न्यायिक संयम के महत्व को रेखांकित किया। एक ऐसा निर्णय, जहां सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया कि संवैधानिक अदालतों को प्रशासनिक प्राधिकारी के दृष्टिकोण के स्थान पर अपना दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए। उक्त मामले में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया कि केवल निर्णय लेने की प्रक्रिया से असहमति पर्याप्त नहीं है।
इसके साथ ही बेंच ने झारखंड राज्य बनाम लिंडे इंडिया लिमिटेड के फैसले का संदर्भ दिया, जहां विशेषज्ञ द्वारा दर्ज किए गए तथ्य की खोज में हस्तक्षेप करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार के दायरे से निपटा गया।
कानूनी स्थिति को दोहराने के बाद बेंच ने कहा कि वर्तमान मामले में प्रशासनिक निगरानी कार्यपालिका पर छोड़ दी जानी चाहिए।
उद्धरण के लिए,
"आईएएस अधिकारी, खासकर सीनियर आईएएस अधिकारी के मूल्यांकन की प्रक्रिया में विशेषज्ञता की गहराई, मूल्यांकन मैट्रिक्स की कठोर और मजबूत समझ के साथ-साथ नौकरशाही में सबसे आगे रहने के लिए आवश्यक दक्षता की सूक्ष्म समझ शामिल होती है। यह प्रशासनिक निरीक्षण है। उक्त कार्य के लिए अपेक्षित विशेषज्ञता और जनादेश होने के कारण इसे कार्यपालिका पर छोड़ दिया जाना चाहिए।"
न्यायालय ने कहा,
आईएएस अधिकारी की समग्र ग्रेडिंग और मूल्यांकन के लिए प्रशासनिक पदाधिकारी के विभिन्न पहलुओं जैसे व्यक्तित्व लक्षण, मूर्त और मात्रात्मक पेशेवर मापदंडों की गहन समझ की आवश्यकता होती है। इनमें शामिल हो सकते हैं, "परियोजनाओं को निष्पादित करने की योग्यता और क्षमता; अनुकूलन क्षमता; समस्या-समाधान और निर्णय लेने का कौशल; योजना और कार्यान्वयन क्षमताएं; और रणनीति तैयार करने और मूल्यांकन करने का कौशल।"
इसके बाद उपरोक्त सांकेतिक मापदंडों का आमतौर पर विशेष मूल्यांकन मैट्रिक्स को अपनाकर विश्लेषण किया जाता है। इसके बाद मूल्यांकन के अंत में उम्मीदवार को समग्र ग्रेड देने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा उनका संश्लेषण किया जाता है।
इस पृष्ठभूमि में, यह निष्कर्ष निकाला गया कि हाईकोर्ट ने तीन अधिकारियों (रिपोर्टिंग प्राधिकरण, समीक्षा प्राधिकरण और स्वीकार करने वाले प्राधिकरण) द्वारा खेमका को दी गई टिप्पणियों और समग्र ग्रेडों की तुलना करने में गलती की।
बेंच ने कहा,
यह आईएएस अधिकारी का मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक डोमेन विशेषज्ञता और प्रशासनिक अनुभव के बिना विशेष डोमेन में प्रवेश कर गया।
केस टाइटल: हरियाणा राज्य बनाम अशोक खेमका और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 13972/2019