जलगांव मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने नगरपालिका परिषद को प्रवेश गेट की चाबियां रोकने के निर्देश दिए, नमाज़ के लिए पिछला गेट खोलने की इजाजत

LiveLaw News Network

20 April 2024 5:20 AM GMT

  • जलगांव मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने नगरपालिका परिषद को प्रवेश गेट की चाबियां रोकने के निर्देश दिए, नमाज़ के लिए पिछला गेट खोलने की इजाजत

    शुक्रवार (19 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि जलगांव के एरंडोल तालुका में एक मस्जिद की चाबियां नगरपालिका परिषद के पास रहेंगी। इस प्रकार आदेश देते हुए, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट कमेटी की अपील का निपटारा कर दिया, जिसमें उसे जलगांव मस्जिद की चाबियां 13 अप्रैल तक परिषद को वापस करने का निर्देश दिया गया था।

    साथ ही पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि नगर परिषद सुबह नमाज़ शुरू होने से काफी पहले और सभी नमाज़ अदा होने तक गेट खोलने के लिए एक अधिकारी को तैनात करेगी।

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगले आदेश तक मस्जिद परिसर वक्फ बोर्ड या याचिकाकर्ता के नियंत्रण में रहनी चाहिए।

    यह तब तक की अंतरिम व्यवस्था है जब तक जिला कलेक्टर अंतिम रूप से कार्यवाही का निपटारा नहीं कर देता।

    मामले की पृष्ठभूमि संक्षेप में ये है कि कलेक्टर ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था जिसमें लोगों को उल्लिखित मस्जिद में प्रार्थना करने से रोक दिया गया था और जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट समिति को मस्जिद की चाबियां एरंडोल नगर परिषद के मुख्य अधिकारी को सौंपने का निर्देश दिया था।

    यह आदेश हिंदू समूह पांडववाड़ा संघर्ष समिति (पीएसएस) द्वारा दायर एक शिकायत की पृष्ठभूमि में आया , जिसमें दावा किया गया है कि विचाराधीन मस्जिद एक मंदिर है और स्थानीय मुस्लिम समुदाय पर अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है।

    कलेक्टर के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। प्रारंभ में, बॉम्बे हाईकोर्ट, औरंगाबाद पीठ ने इस आदेश पर रोक लगा दी और प्रथम दृष्टया पाया कि कलेक्टर ने यह आदेश इस बात से संतुष्ट हुए बिना पारित किया कि शांति भंग होने की संभावना है।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने अंततः समिति की याचिका को निरर्थक बताते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को चाबियां परिषद को सौंपने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने ओसेफ मथाई और अन्य बनाम एम अब्दुल खादिर (2002) 1 SCC 31 में शीर्ष न्यायालय के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि रोक का आदेश स्वचालित रूप से वैधानिक सुरक्षा के विस्तार के बराबर नहीं है।

    इसी आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी।

    शुरुआत में शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी करते हुए (10 अप्रैल को) इन चाबियों की वापसी पर रोक लगा दी थी ।

    हालांकि शुक्रवार के आदेश में, बेंच ने अपने पहले के आदेश को स्पष्ट किया और कहा:

    ''पूरे परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार की चाबी नगर परिषद के पास रहेगी मस्जिद परिसर के संबंध में यथास्थिति रहेगी और यह अगले आदेश तक वक्फ बोर्ड या याचिकाकर्ता सोसायटी के नियंत्रण में रहेगा। निकास और प्रवेश...मंदिर या स्मारक सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होंगे और विभिन्न धर्मों के लोगों को बिना किसी बाधा के दर्शन की अनुमति होगी। (पीछे की ओर) गेट की चाबी भी परिषद के पास रहेगी और परिषद का यह कर्तव्य होगा कि वह सुबह नमाज़ शुरू होने से पहले और जब तक सभी नमाज़ अदा नहीं हो जातीं, उस गेट को खोलने के लिए एक अधिकारी को नियुक्त करें। हालांकि, पक्षकारों द्वारा किसी भी प्रकार का कोई अतिक्रमण नहीं किया जाएगा।

    कोर्टरूम की कार्यवाही

    सुनवाई के दौरान जस्टिस कांत ने वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वकील से उसका रुख पूछा। इस पर वकील ने जवाब दिया कि बोर्ड शुरू से ही याचिकाकर्ता का समर्थन कर रहा है।

    जस्टिस कांत ने कहा कि संपत्ति की देखभाल करना बोर्ड के वैधानिक दायित्व के तहत है और इसे किसी निजी संस्था को नहीं सौंपा जा सकता है।

    इसके बाद, नगर परिषद की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गुरु कृष्ण कुमार ने कहा कि संपत्ति को एक प्राचीन स्मारक घोषित किया गया है। इसका जवाब देते हुए जस्टिस कांत ने कहा कि यह एक प्राचीन स्मारक है, लेकिन साथ ही यह एक मस्जिद भी है जहां नमाज़ पढ़ी जाती है ।

    “प्रावधानों को सुसंगत बनाने के लिए, संपत्ति से ऐसा प्रतीत होता है कि एक मस्जिद है जहां नमाज़ और अन्य अनुष्ठान किए जाते हैं। वहां कुछ खुली जगह है...वहां शायद कोई जैन मंदिर भी है। इसलिए, जैन मंदिर के प्रबंधन का सवाल है, इसकी देखभाल नगर पालिका द्वारा की जाएगी...मस्जिद के हिस्से की देखभाल केवल वक्फ बोर्ड कर सकता है, निजी संस्था नहीं।''

    आगे बढ़ते हुए, बोर्ड के वकील ने बताया कि कलेक्टर द्वारा पारित आदेश अंतरिम था और सुझाव दिया कि कलेक्टर इस मामले पर निर्णय ले सकते हैं और अंतिम आदेश पारित कर सकते हैं।

    अंततः, न्यायालय ने उपरोक्त आदेश पारित करते हुए यह भी जोड़ा:

    “वकील, पक्षों के सीनियर एडवोकेट इस बात से सहमत हैं कि मामले का निपटारा किया जा सकता है। अन्य सभी मुद्दों का समाधान (कलेक्टर) द्वारा लंबित कार्यवाही में किया जाएगा। यह स्पष्ट किया जाता है कि हमने उन मुद्दों के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।”

    केस : जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट समिति बनाम महाराष्ट्र राज्य, डायरी संख्या- 16176 - 2024

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