सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल जजों के समय विस्तार के लिए सीधे रजिस्ट्री से पत्राचार करने पर आपत्ति जताई, हाईकोर्ट को SOP बनाने का निर्देश दिया
Amir Ahmad
31 May 2025 12:16 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट जजों द्वारा सीधे सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को पत्र लिखकर उन मामलों में समय विस्तार की मांग करने की प्रथा अस्वीकार की, जहां ट्रायल में तेजी लाने के निर्देश जारी किए गए।
न्यायालय ने कहा,
“हमारा लगातार अनुभव रहा है कि जिन मामलों में इस न्यायालय ने ट्रायल के शीघ्र निष्कर्ष के लिए निर्देश जारी किए हैं, संबंधित जज इस न्यायालय की रजिस्ट्री से पत्राचार कर रहे हैं। बाद में उन पत्रों को आदेश के लिए न्यायालय के समक्ष रखा जाता है। हम इस तरह की प्रथा को पूरी तरह से अस्वीकार्य मानते हैं।”
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी करना संबंधित हाईकोर्ट की रजिस्ट्री का कर्तव्य है। यदि किसी विस्तार की आवश्यकता है तो अनुरोध की तत्काल पर्यवेक्षी अधिकारी द्वारा जांच की जानी चाहिए। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल या रजिस्ट्रार न्यायिक द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेजा किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा,
“ऐसे मामलों में जहां इस न्यायालय द्वारा मुकदमे, वाद या अपील को समाप्त करने का निर्देश जारी किया जाता है, ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी करना संबंधित हाईकोर्ट की रजिस्ट्री का कर्तव्य है। यदि विस्तार की आवश्यकता है तो इसे तत्काल पर्यवेक्षी अधिकारी की संतुष्टि के साथ प्रदान किया जा सकता है। इस संबंध में पत्राचार रजिस्ट्रार जनरल या रजिस्ट्रार न्यायिक द्वारा इस न्यायालय को फारवर्ड किया जाएगा।”
न्यायालय ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अंसार अहमद चौधरी के माध्यम से दायर जमानत याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की।
इस याचिका को पहले 20 जुलाई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्देश के साथ खारिज कर दिया था कि मुकदमे को यथासंभव 18 महीने के भीतर पूरा किया जाए।
न्यायालय ने कहा था कि सभी पीड़ितों के बयान दर्ज करने के पूरा होने के आधार पर याचिकाकर्ता को जमानत के लिए नए सिरे से आवेदन करने की स्वतंत्रता होगी।
इस आदेश के अनुपालन में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने 26 जुलाई 2023 को एक पत्र के माध्यम से संबंधित न्यायालय को न्यायालय के निर्देशों से अवगत कराया था।
ट्रायल जज ने 20 मार्च 2025 को सीधे सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को एक पत्र भेजा जिसमें मामले के निपटारे के लिए कुछ और महीने मांगे गए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की प्रथा स्वीकार्य नहीं है।
न्यायालय ने एक अन्य मामले, रामकिशोर @ कल्लू बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य का भी उल्लेख किया जिसमें इसी तरह का मुद्दा उठाया गया था।
उस मामले में न्यायालय के निर्देश के बाद, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार की, जिसमें न्यायिक अधिकारियों द्वारा ऐसे मामलों में समय विस्तार का अनुरोध करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई।
SOP जिला न्यायपालिका में समयबद्ध परीक्षणों मुकदमों या कार्यवाही को संभालने वाले सभी पीठासीन अधिकारियों पर लागू होता है। यह सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट की रजिस्ट्री के साथ सीधे संचार को प्रतिबंधित करता है। सभी विस्तार अनुरोधों को उचित चैनलों के माध्यम से भेजा जाना चाहिए।
जिन मामलों में हाईकोर्ट ने सुनवाई में तेजी लाई है, उनमें विस्तार के लिए अनुरोध प्रधान जिला जज या प्रधान न्यायाधीश फैमिली कोर्ट जबलपुर की मुख्य पीठ के रजिस्ट्रार (न्यायिक) या इंदौर या ग्वालियर के प्रधान रजिस्ट्रार के माध्यम से आधिकारिक ईमेल और नियमित मोड दोनों का उपयोग करके भेजा जाना चाहिए।
जिन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में तेजी लाई है, उनमें हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) या प्रधान रजिस्ट्रार अनुरोध को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को फारवर्ड करेंगे।
अनुरोधों में मामले का विवरण हाईकोर्ट के आदेश की तिथि, वर्तमान स्थिति, देरी के कारण और मांगी गई विशिष्ट विस्तार अवधि, सारणीबद्ध प्रारूप में शामिल होनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो प्रधान जिला न्यायाधीश या रजिस्ट्रार का एक नोट जोड़ा जा सकता है।
SOP बार-बार या अनुचित देरी के खिलाफ चेतावनी देता है और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार द्वारा मासिक निगरानी और रिकॉर्ड रखरखाव को अनिवार्य बनाता है।
अभ्यास की एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह आदेश सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को सूचित किया जाए।
न्यायालय ने निर्देश दिया,
"अन्य हाईकोर्ट में भी यही प्रथा लागू करने के लिए यह आवश्यक है कि इस आदेश को संबंधित हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को सूचित किया जाए, ताकि वे मामले को माननीय चीफ जस्टिस के समक्ष मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने के लिए रख सकें, जिसमें यह बताया जाएगा कि जिन मामलों में सुनवाई, वाद या अपील की सुनवाई या निष्कर्ष में तेजी लाने के निर्देश जारी किए गए। उन्हें इस न्यायालय की रजिस्ट्री के साथ किस तरह से पत्राचार किया जाएगा।"
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री को यह आदेश सभी हाईकोर्ट को भेजने का निर्देश दिया, जिससे सुधारात्मक उपाय किए जा सकें और रिपोर्ट प्रस्तुत की जा सकें।
इसके साथ ही मामले को एक महीने बाद सूचीबद्ध किया।
केस टाइटल - दुर्गावती @ प्रिया बनाम सीबीआई

