सुप्रीम कोर्ट ने EWS स्टूडेंट्स को वर्चुअल क्लासरूम तक पहुंचने के लिए गैजेट देने पर सरकारी नीतियों का ब्योरा मांगा
Amir Ahmad
4 Dec 2025 4:44 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और वंचित समूहों के बच्चों को वर्चुअल क्लास में शामिल होने में मदद करने के लिए गैजेट देने की अपनी नीतियों को रिकॉर्ड पर रखे।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने सरकार को ब्योरा देने के लिए दो हफ्ते का समय दिया और मामले की अगली सुनवाई 3 फरवरी 2026 को तय की।
कोर्ट ने कहा,
"भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग या वंचित समूह 4 के स्टूडेंट्स को कुछ सुविधाएं समान रूप से देने के लिए समय-समय पर ली गई सरकारी नीतियों या फैसलों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए दो हफ्ते का समय मांगा है।और उन्हें यह समय दिया जाता है। ये छात्र संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत गारंटीकृत अधिकार के अनुसार मुफ्त शिक्षा के हकदार हैं।"
कोर्ट दिल्ली-NCR में EWS स्टूडेंट्स को गैजेट देने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था ताकि वे वायु प्रदूषण के कारण फिजिकल क्लास बंद होने पर वर्चुअल क्लास में शामिल हो सकें।
यह मामला मूल रूप से 2020 में कोविड महामारी के दौरान दायर किया गया था। यह COVID-19 महामारी के दौरान प्राइवेट अनएडेड स्कूलों और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले EWS और DG छात्रों के लिए बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के कार्यान्वयन से संबंधित है।
18 सितंबर 2020 को दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि जब कोई स्कूल स्वेच्छा से सिंक्रोनस फेस-टू-फेस रियल टाइम ऑनलाइन शिक्षा को अपने पढ़ाने के तरीके के रूप में चुनता है तो उसे RTE अधिनियम की धारा 12(1)(c) और धारा 3(2) के तहत EWS/DG स्टूडेंट्स को एक ऑप्टिमम कॉन्फ़िगरेशन वाले गैजेट और उपकरण और एक इंटरनेट पैकेज देना होगा। हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि ये सुविधाएं लाभार्थियों को मुफ्त में दी जाएं। साथ ही संस्थान को धारा 12(2) के तहत राज्य से रीइम्बर्समेंट मांगने का अधिकार होगा।
इस फैसले को दिल्ली सरकार और भारत सरकार ने चुनौती दी थी। 10 फरवरी 2021 को कोर्ट ने नोटिस जारी किया और हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। 8 अक्टूबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महामारी कम होने के बावजूद EWS और DG बच्चों को कंप्यूटर और ऑनलाइन सुविधाओं तक पहुंच देना ज़रूरी है, क्योंकि डिजिटल डिवाइड ने शिक्षा तक पहुंच को प्रभावित किया है।
प्राइवेट स्कूलों ने तर्क दिया कि उन्हें पहले से ही खर्च उठाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए और राज्य ने कहा कि उसके पास ज़रूरी संसाधन नहीं हैं।
कोर्ट ने तब इस बात पर ज़ोर दिया था कि आर्टिकल 21A राज्य पर शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी डालता है और कहा कि केंद्र और राज्यों दोनों को RTE Act की धारा 7 के तहत एक साथ मिलकर काम करके एक सही समाधान खोजना चाहिए।
कोर्ट ने अब केंद्र से RTE Act को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी है और इस मामले की अगली सुनवाई 3 फरवरी, 2026 को होगी।

