सांसदों और विधायकों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की नींव को नष्ट कर रही है: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

4 March 2024 6:38 AM GMT

  • सांसदों और विधायकों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की नींव को नष्ट कर रही है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव का फैसला खारिज करते हुए सार्वजनिक हित, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और संसदीय लोकतंत्र पर विधायी सदस्यों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के हानिकारक प्रभाव के बारे में महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा,

    “विधायिका के सदस्यों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती है। यह संविधान की आकांक्षाओं और विचारशील आदर्शों के लिए विघटनकारी है और ऐसी राजनीति का निर्माण करता है, जो नागरिकों को जिम्मेदार, उत्तरदायी और प्रतिनिधि लोकतंत्र से वंचित करता है।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सोमवार सुबह दिए गए नवीनतम फैसले में कहा गया है कि संसद और विधान सभाओं के सदस्य विधायिका में वोटों या भाषणों से संबंधित रिश्वतखोरी के आरोपों पर अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकते हैं।

    अदालत का फैसला पीवी नरसिम्हा राव के फैसले के प्रभावों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद आया, जिसने विधायकों को रिश्वत लेने के लिए संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत छूट प्रदान की। 1998 के मामले में 3:2 के बहुमत से माना गया कि विधायकों को सदन में उनके भाषण या वोट से संबंधित रिश्वत के मामलों में मुकदमा चलाने से छूट दी गई, बशर्ते कि वे उस सौदे के अंत को बरकरार रखें जिसके लिए उन्हें रिश्वत मिली है।

    विस्तृत फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अब इस बात पर जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 का उद्देश्य ऐसा माहौल बनाए रखना है, जहां विधायिका के भीतर बहस और विचार-विमर्श हो सके।

    अदालत ने कहा,

    यह उद्देश्य तब कमजोर हो जाता है, जब किसी सदस्य को रिश्वत के कृत्य के कारण वोट देने या किसी विशेष तरीके से बोलने के लिए प्रेरित किया जाता है।

    अदालत ने कहा,

    "अनुच्छेद 105 या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई, क्योंकि रिश्वतखोरी में शामिल सदस्य आपराधिक कृत्य में शामिल होता है, जो वोट देने या विधायिका में भाषण देने के लिए आवश्यक नहीं है।"

    पीवी नरसिम्हा राव के फैसले को झारखंड मुक्ति मोर्चा की नेता सीता सोरेन ने अपील में चुनौती दी थी, जिन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव के लिए रिश्वत लेने का आरोप है।

    झारखंड हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

    सीजेआई चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा,

    "पीवी नरसिम्हा राव मामले में फैसला, जो वोट देने या भाषण देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने वाले विधायिका के सदस्य को अभियोजन से छूट देता है, उसका सार्वजनिक हित, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और संसदीय लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। अगर फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया गया तो इस अदालत द्वारा त्रुटि को बरकरार रखने की अनुमति देना गंभीर खतरा है।"

    दो दिन की लंबी सुनवाई के बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की सात-न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल अक्टूबर में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

    केस टाइटल- सीता सोरेन बनाम भारत संघ | 2019 की आपराधिक अपील नंबर 451

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