विवाह समारोहों के दौरान फायरिंग एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रथा, ऐसे समारोहों में बंदूकों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

12 March 2024 5:47 AM GMT

  • विवाह समारोहों के दौरान फायरिंग एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रथा, ऐसे समारोहों में बंदूकों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    विवाह समारोह के दौरान जश्न में की गई गोलीबारी में व्यक्ति की मौत होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की कार्रवाई को गलत ठहराया।

    इस तरह की गोलीबारी पर निराशा व्यक्त करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा:

    “विवाह समारोहों के दौरान जश्न में फायरिंग करना हमारे देश में दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन प्रचलित प्रथा है। वर्तमान मामला इस तरह की अनियंत्रित और अनुचित जश्न फायरिंग के विनाशकारी परिणामों का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

    वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता/वर्तमान अभियुक्त ने सुरक्षा के लिए उचित उपाय किए बिना, भीड़-भाड़ वाली जगह, यानी एक विवाह समारोह में गोलीबारी की। इससे शादी में मौजूद एक व्यक्ति (मृतक) की मौत हो गई।

    ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को हत्या के आरोप में दोषी ठहराया। हाईकोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की। जब मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया तो सीमित बिंदु पर नोटिस जारी किया गया कि क्या आरोपी हत्या के बजाय गैर इरादतन हत्या के लिए उत्तरदायी है।

    रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर गौर करने के बाद अदालत ने बताया कि मृतक और अपीलकर्ता के बीच पहले से कोई दुश्मनी नहीं है।

    अदालत ने इसके निर्णय के लिए यह सवाल उठाया,

    "क्या विवाह समारोह के दौरान जश्न में फायरिंग करने के अपीलकर्ता के कृत्य को इतना आसन्न खतरनाक कृत्य माना जा सकता है, जिससे मौत हो सकती है या ऐसी शारीरिक चोट लग सकती है, जिससे मौत होने की संभावना हो?"

    इस कानूनी पृष्ठभूमि को बनाते हुए न्यायालय ने अपना भरोसा कुंवर पाल सिंह बनाम उत्तराखंड राज्य (2014) 12 SCC 434 पर रखा।

    उक्त मामले में न्यायालय ने इसी तरह की स्थिति से निपटते हुए राय दी थी:

    “इन परिस्थितियों में हम पाते हैं कि अपीलकर्ता का मृतक को मारने का इरादा, यदि कोई हो, उचित संदेह से परे साबित नहीं हुआ और किसी भी मामले में अपीलकर्ता संदेह के लाभ का हकदार है, जो इस मामले में प्रमुख है… हालांकि इरादे को बताना संभव नहीं है, यह मानना भी संभव नहीं है कि कार्य इस जानकारी के बिना किया गया कि इससे मृत्यु होने की संभावना है। हर कोई, जो जीवित कारतूसों के साथ बंदूक रखता है और यहां तक कि अन्य लोग भी जानते हैं कि बंदूक चलाना और वह भी कई लोगों की उपस्थिति में कार्य है, मौत का कारण बन सकता है, जैसा कि वास्तव में हुआ था। बंदूकें जिम्मेदारी और सावधानी की भावना के साथ ले जानी चाहिए और इनका उपयोग विवाह समारोह जैसी जगहों पर नहीं किया जाना चाहिए।''

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मौजूदा मामले में आरोपी ने सुरक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाए। हालांकि, इरादे की अनुपस्थिति और पिछली दुश्मनी सहित अन्य परिस्थितियों पर विचार करते हुए अदालत ने अपीलकर्ता की सजा को हत्या से घटाकर गैर इरादतन हत्या कर दिया। यह देखते हुए कि अपीलकर्ता पहले से ही आठ साल तक हिरासत में है, अदालत ने वर्तमान मामले में उसकी रिहाई का निर्देश दिया। इस प्रकार, अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई।

    गौरतलब है कि अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिना लाइसेंस बंदूकों और आग्नेयास्त्रों के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया है।

    केस टाइटल: शाहिद अली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, डायरी नंबर- 25699 - 2021

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