65% आरक्षण संबंधी कानून रद्द करने के खिलाफ RJD ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

Shahadat

6 Sept 2024 1:32 PM IST

  • 65% आरक्षण संबंधी कानून रद्द करने के खिलाफ RJD ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

    सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें आरक्षण पर बिहार संशोधन कानून रद्द करने को चुनौती दी गई। उक्त कानून के तहत OBC/ST/SC के लिए आरक्षण प्रतिशत बढ़ाकर 65% कर दिया गया था।

    RJD ने पटना हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जनजातियों (ST), अनुसूचित जातियों (SC) और अत्यंत पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने वाले बिहार संशोधन कानून रद्द कर दिया गया था।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने नोटिस जारी करने और इसे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली लंबित याचिका के साथ जोड़ने पर सहमति जताई।

    RJD की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट पी विल्सन ने कहा कि बिहार में 85% आबादी ओबीसी है। उन्होंने जनहित अभियान बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि यह अनुपात वर्तमान मामले पर भी लागू होता है।

    उक्त मामले में न्यायालय ने 3:2 बहुमत से माना कि 103वां संविधान संशोधन, जिसने शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण की शुरुआत की, 50% की अधिकतम सीमा का उल्लंघन करने के लिए मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने अपनी राय में कहा कि अधिकतम सीमा की सीमा लचीली नहीं है।

    न्यायालय ने पहले बिहार राज्य द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया था। न्यायालय ने विवादित निर्णय पर स्थगन देने से भी इनकार किया।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि रोजगार के लिए इंटरव्यू प्रक्रिया कानून के अनुसार चल रही है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस हरीश कुमार की हाईकोर्ट की पीठ ने 20 जून को जनहित याचिका पर बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 रद्द कर दिया।

    2023 में किए गए जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर राज्य ने संशोधन पारित किए। अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के लिए कोटा मौजूदा 18% से बढ़ाकर 25% कर दिया गया; पिछड़े वर्गों (बीसी) के लिए 12% से 18%; अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए 16% से 20%; और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए कोटा दोगुना कर दिया गया, 1% से 2%

    हाईकोर्ट ने संशोधनों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16 (4) के तहत समानता का उल्लंघन करने वाला और अधिकारहीन बताते हुए खारिज कर दिया। अनुच्छेद 15(4) राज्य को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नागरिकों के किसी भी वर्ग की उन्नति के लिए कोई विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 16 (4) यह प्रावधान करता है कि राज्य किसी भी पिछड़े वर्ग के लिए पद आरक्षित कर सकता है, जिनका राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।

    न्यायालय ने संशोधनों को असंवैधानिक करार देते हुए उन्हें रद्द करने के लिए निम्नलिखित कारण बताए:

    (क) आरक्षण के लिए 50% की अधिकतम सीमा है।

    (ख) आरक्षण पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के अनुपात पर आधारित था (आनुपातिक आरक्षण)।

    (ग) राज्य/प्रतिवादी ने संशोधन अधिनियमों के तहत आरक्षण बढ़ाने से पहले कोई विश्लेषण या गहन अध्ययन नहीं किया।

    केस टाइटल: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बनाम बिहार राज्य और अन्य। डायरी नंबर 35551-2024

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