स्थायी निषेधाज्ञा प्रदान करने वाले डिक्री का निष्पादन किसी परिसीमा अवधि के अधीन नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
13 Feb 2025 7:03 AM

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थायी निषेधाज्ञा प्रदान करने वाले डिक्री का निष्पादन किसी परिसीमा अवधि के अधीन नहीं है। यह परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 136 के मद्देनजर है। मामले में कहा गया कि स्थायी निषेधाज्ञा प्रदान करने वाले डिक्री के प्रवर्तन या निष्पादन के लिए आवेदन किसी सीमा अवधि के अधीन नहीं होगा।
कोर्ट ने यह टिप्पणी डिक्री की तारीख से चालीस साल बाद स्थायी निषेधाज्ञा के लिए डिक्री के निष्पादन के खिलाफ एक तर्क को खारिज करते हुए की।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा,
"स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री तब लागू की जा सकती है या लागू हो सकती है, जब निर्णय लोन डिक्री धारक के शांतिपूर्ण कब्जे को बाधित करने की कोशिश करता है या किसी न किसी तरीके से डिक्री धारक को बेदखल करने की कोशिश करता है या उस संपत्ति के शांतिपूर्ण उपयोग में बाधा उत्पन्न करता है जिस पर उसके पास डिक्री के रूप में सिविल कोर्ट से स्वामित्व की घोषणा है।"
खडपीठ ने आगे कहा,
"निषेधाज्ञा का प्रत्येक उल्लंघन स्वतंत्र है। कानून के तहत कार्रवाई योग्य है, जिससे निर्णय लोन धारक उत्तरदायी होता है। जहां डिक्री का लगातार उल्लंघन होता है, वहां निर्णय-ऋणी को ऐसे प्रत्येक उल्लंघन पर निपटाया जा सकता है। रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत लागू नहीं होता। न्यायालय से सख्त रुख अपनाने और कठोर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है।"
केस टाइटल- मलिक उर्फ भूदेव मलिक बनाम रणजीत घोषाल, सिविल अपील संख्या 2248/2025