क्या SFIO अधिकारी दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पुलिस अधिकारी हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कानून के प्रश्न को खुला छोड़ दिया

Shahadat

18 Jan 2024 5:21 PM IST

  • क्या SFIO अधिकारी दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पुलिस अधिकारी हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कानून के प्रश्न को खुला छोड़ दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) द्वारा दायर शिकायत रद्द करने की याचिका खारिज करते हुए कानून का महत्वपूर्ण प्रश्न खुला छोड़ दिया, यानी कि क्या SFIO आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत पुलिस अधिकारी हैं।

    जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ के सामने उक्त मामला रखा गया।

    हाईकोर्ट ने अपने विवादित आदेश में निष्कर्ष निकाला कि सीआरपीसी और कंपनी एक्ट (Company Act) के प्रावधानों के संयुक्त और सामंजस्यपूर्ण अध्ययन से यह नहीं कहा जा सकता कि SFIO को आईपीसी के तहत किसी अपराध की जांच करने से रोका गया।

    हालांकि, 16 जनवरी के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपरोक्त प्रश्न सीधे हाईकोर्ट के समक्ष विचार के लिए नहीं उठा। इस प्रकार, इसने आदेश दिया कि आक्षेपित निर्णय को मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा।

    वर्तमान मुकदमा तब उठा जब कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने 15 कंपनियों के मामलों की जांच का आदेश दिया। तदनुसार, SFIO ने जांच करने के लिए निरीक्षकों की टीम नियुक्त की। हालांकि, बाद में SFIO को कुछ अन्य कंपनियों की भी जांच करने की मंजूरी मिल गई। इसके अनुसरण में, इसने कंपनी एक्ट की धारा 212(12) के तहत अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की।

    प्रासंगिक रूप से एमसीए ने मंजूरी पत्र जारी कर SFIO को एक्ट के तहत अपराध करने के लिए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा शुरू करने का निर्देश दिया। तदनुसार, शिकायत दर्ज की गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता और कंपनी एक्ट की धारा 447 सहित अपराध करने का आरोपी बताया गया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने अन्य बातों के अलावा, तर्क दिया कि आईपीसी के तहत अपराधों की जांच करने की शक्ति और अधिकार क्षेत्र केवल 'पुलिस अधिकारी' के पास है। '

    यह प्रस्तुत किया गया कि कंपनी एक्ट और सीआरपीसी की योजना के अनुसार, SFIO की शक्ति केवल एक्ट के तहत अपराधों की जांच तक सीमित है। इसलिए आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गई जांच और उसके बाद की शिकायतें सुनवाई योग्य नहीं हैं।

    आगे बताया गया कि याचिकाकर्ताओं को आईपीसी के तहत भी कथित अपराध के आरोपी के रूप में सूचीबद्ध किया गया। यह तर्क दिया गया कि प्रासंगिक प्रावधानों को संयुक्त रूप से पढ़ने से स्पष्ट होता है कि केवल पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी ही आईपीसी के तहत जांच शुरू कर सकता है। यह प्रस्तुत किया गया कि SFIO के किसी भी अधिकारी को ऐसी शक्ति नहीं दी गई।

    हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 4(2) में प्रावधान है कि कंपनी एक्ट जैसे अन्य कानूनों के तहत अपराधों की जांच सीआरपीसी के अनुसार की जाएगी, जब तक कि कानून में अन्यथा प्रावधान न हो। कंपनी एक्ट की धारा 212(15) में प्रावधान है कि विशेष न्यायालय के समक्ष दायर की गई जांच रिपोर्ट को पुलिस अधिकारी द्वारा दायर की गई रिपोर्ट के रूप में माना जाएगा।

    इसके आधार पर, न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की योजना के तहत जांच रिपोर्ट को पुलिस रिपोर्ट के रूप में माना जाएगा। इसलिए उक्त रिपोर्ट दाखिल करने वाले अधिकारी को भी पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी माना जाएगा। हालांकि उक्त अधिनियम में विशेष रूप से प्रावधान नहीं किया गया।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    “यदि वर्तमान अधिनियम के तहत जांच के दौरान, संबंधित जांच अधिकारी को आईपीसी या जांच किए जा रहे लेनदेन से संबंधित किसी अन्य कानून के तहत दंडनीय अपराध का पता चलता है तो वह अलग कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता। ऐसी जांच सीआरपीसी की धारा 4(1) के तहत की जा सकती है। यदि बाद में दर्ज की गई रिपोर्ट को सीआरपीसी की धारा 173(2) के तहत पुलिस रिपोर्ट माना जाता है तो जैसा कि ऊपर बताया गया है, अधिकारी को पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी की शक्तियों के साथ निहित माना जाएगा।“

    तदनुसार, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी।

    केस टाइटल: आर.के. गुप्ता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया., डायरी नंबर- 785 - 2024

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