सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि उत्पादों के लाइसेंस निलंबित किए
Shahadat
30 April 2024 10:24 AM IST
उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने सोमवार (29 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर हलफनामे मेा कहा कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनी दिव्य फार्मेसी के 14 उत्पादों के विनिर्माण लाइसेंस 15 अप्रैल को निलंबित कर दिए गए।
प्राधिकरण ने कहा,
औषधि और कॉस्मेटिक नियम 1954 के नियम 159(1) के तहत शक्ति का उपयोग करते हुए इन उत्पादों के लाइसेंस "तत्काल प्रभाव" से निलंबित कर दिए गए। विशेष रूप से, यह आदेश तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल को इन उत्पादों के अवैध विज्ञापनों के लिए पतंजलि और दिव्य फार्मेसी के खिलाफ निष्क्रियता के लिए राज्य प्राधिकरण की खिंचाई की।
इसके अलावा, प्राधिकरण ने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद, इसके प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण, इसके सह-संस्थापक बाबा रामदेव और दिव्य फार्मेसी के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हरिद्वार के समक्ष ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज की गई।
जिन उत्पादों के लाइसेंस निलंबित किए गए, उनमें स्वासारि गोल्ड, स्वासारि वटी, ब्रोंकोम, स्वासारि प्रवाही, स्वासारि अवलेह, मुक्ता वटी एक्स्ट्रा पावर, लिपिडोम, बीपी ग्रिट, मधुग्रिट, मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर, लिवामृत एडवांस, लिवोग्रिट, आईग्रिट गोल्ड और पतंजलि दृष्टि आई ड्रॉप शामिल हैं।
प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का किसी भी "अनजाने और अनजाने" गैर-अनुपालन के लिए सुप्रीम कोर्ट से "बिना शर्त और अयोग्य माफी" भी मांगी।
दोनों संस्थाओं को तत्काल प्रभाव से उपरोक्त उत्पादों का निर्माण बंद करने के साथ-साथ एसएलए के उप निदेशक को इसकी मूल फॉर्मूलेशन शीट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।
इसके अलावा, एसएलए ने उत्तराखंड में सभी आयुर्वेदिक/यूनानी दवा कारखानों को निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
♦ प्रत्येक आयुर्वेदिक/यूनानी दवा फैक्ट्री को ड्रग एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 का सख्ती से पालन करना होगा।
♦ कोई भी दवा फैक्ट्री अपने उत्पाद के लेबल पर आयुष मंत्रालय द्वारा अनुमोदित/प्रमाणित जैसे दावों का उपयोग नहीं करेगी।
♦ विज्ञापनों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम, 1995, प्रतीक और नाम अधिनियम, 1950 के प्रावधानों का पालन करना चाहिए।
♦ प्रत्येक फार्मास्युटिकल फैक्ट्री अपने उत्पादों की लेबलिंग के लिए ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1945 के नियम 161, 161ए और 161बी का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करेगी।
♦ प्रत्येक आयुर्वेदिक/यूनानी दवा कंपनी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम, 1995, प्रतीक और नाम अधिनियम, 1950 और औषधि और जादुई उपचार अधिनियम, 1954 के प्रावधानों से गुजरना चाहिए और आचरण के बाद ही विज्ञापन प्रसारित किए जाने चाहिए। अधिनियम में उल्लिखित प्रावधानों के तहत भर्ती परीक्षा।
यह घटनाक्रम इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा पतंजलि आयुर्वेद द्वारा प्रकाशित भ्रामक मेडिकल विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर दायर मामले में हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट को दिए गए वादे का उल्लंघन करते हुए आपत्तिजनक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद, बालकृष्ण और रामदेव के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की। उन्होंने कोर्ट के समक्ष माफी का हलफनामा भी दाखिल किया।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ इस मामले पर विचार करेगी। पिछली सुनवाई की तारीख पर खंडपीठ ने कहा कि उसकी जांच सिर्फ पतंजलि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सभी एफएमसीजी कंपनियों तक सीमित है, जो अपने उत्पादों के बारे में झूठे स्वास्थ्य दावों का विज्ञापन करके "जनता को धोखा" दे रही हैं।
केस टाइटल: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया | डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 645/2022