केरल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम का विरोध किया, कहा - यह धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करता है

Amir Ahmad

24 April 2025 6:34 AM

  • केरल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम का विरोध किया, कहा - यह धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करता है

    केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में प्रारंभिक जवाब दाखिल करते हुए वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 का विरोध किया। बोर्ड ने दलील दी कि यह कानून असंवैधानिक है, क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को कमजोर करता है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

    बोर्ड ने भारत सरकार पर चयनात्मक नीति अपनाने का आरोप लगाया, जिसके तहत कुछ धर्मों को निशाना बनाकर उनकी संपत्तियों को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है।

    बोर्ड ने कहा,

    “सभी धर्मों के पास धार्मिक उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों के प्रबंधन के लिए समान कानून नहीं हैं। हाल ही में भारत सरकार कुछ धर्मों के खिलाफ चयनात्मक नीति अपना रही है और उनकी संपत्तियों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है।”

    संशोधन बिंदुओं पर आपत्ति

    बोर्ड ने वक्फ अधिनियम, 1995 में किए गए कई संशोधनों पर आपत्ति जताई, जैसे:

    1. वक्फ-बाय-यूजर की धारणा को हटाना।

    2. वक्फ बनाने के लिए इस्लाम के 5 साल के अभ्यास की अनिवार्यता।

    3. वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की अनुमति।

    4. सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण के विवादों का निर्णय सरकारी अधिकारियों द्वारा किया जाना।

    5. वक्फ-ए-औलाद से संबंधित परिवर्तन करना।

    6. गैर-मुसलमानों द्वारा वक्फ बनाने पर रोक इत्यादि।

    इनमें से कई बिंदुओं को अन्य याचिकाओं में भी चुनौती दी गई।

    गैर-मुसलमानों की नियुक्ति पर आपत्ति

    गैर-मुसलमानों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में शामिल करने के प्रस्ताव पर केरल वक्फ बोर्ड ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है, जो किसी धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है। चूंकि वक्फ बोर्ड मुख्य रूप से धार्मिक संपत्तियों से संबंधित होते हैं। गैर-मुस्लिम सदस्य ऐसे मामलों में उपयुक्त निर्णय नहीं ले सकेंगे।

    बोर्ड ने कहा,

    “यह कानून वक्फ प्रणाली को मजबूत करने के उद्देश्य से नहीं बनाया गया। विभिन्न औक़ाफ से प्राप्त धन का उपयोग वक्फ बोर्डों के संचालन में होता है, इसलिए मुतवल्लियों के प्रतिनिधित्व की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए और उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से चुना जाना चाहिए।”

    अन्य आपत्तियां

    अधिनियम की धारा 40 को हटाने पर भी बोर्ड ने आपत्ति जताई, क्योंकि यह वक्फ बोर्ड को यह निर्णय लेने का अधिकार देती थी कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं। अब यह अधिकार जिला कलेक्टर को सौंपा गया, जिससे प्रक्रिया जटिल और लंबी हो जाएगी और वक्फ संपत्तियों के खोने का खतरा बढ़ जाएगा।

    वक्फ सर्वेक्षण आयुक्तों की शक्तियां भी अब जिला कलेक्टर को दी गईं। बोर्ड ने कहा कि प्रशासनिक कार्यों में व्यस्त जिला प्रशासन इस कार्य को प्रभावी ढंग से नहीं कर पाएगा।

    संसद की संयुक्त समिति ने केरल का दौरा नहीं किया और न ही वहां के प्रमुख हितधारकों से सलाह ली, जिसे बोर्ड ने भेदभावपूर्ण रवैया बताया।

    वक्फ न्यायाधिकरण के निर्णयों के खिलाफ अपील प्रावधान जोड़ने, मुतवल्लियों पर जिला कलेक्टर के निर्देशों का पालन अनिवार्य बनाने, परिसीमा अधिनियम (Limitation Act) के लागू होने, जैसी धाराओं पर भी बोर्ड ने आपत्ति जताई।

    अंतिम टिप्पणी

    वकील सुभाष चंद्रन के माध्यम से दायर जवाब में कहा गया,

    “वर्तमान में संशोधित अधिनियम की धाराएं धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांतों और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को पूरी तरह से कमजोर कर देती हैं। ये संशोधन पूरी तरह से एकतरफा हैं और राज्य वक्फ बोर्डों व राज्य सरकारों की शक्तियों को छीन लेते हैं। अब वक्फ, उसकी संपत्तियों, सभी स्रोतों से प्राप्त राजस्व और मुतवल्लियों के नियंत्रण की पूरी जानकारी केंद्र सरकार के पास होगी। यह कानून अन्य किसी भी धार्मिक समुदाय के मामले में नहीं अपनाया गया।

    17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस बात को रिकॉर्ड पर लिया कि वह कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं करेगी और राज्य सरकारों एवं वक्फ बोर्डों को अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति दी।

    अब तक असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे सात राज्यों ने 2025 संशोधन अधिनियम के समर्थन में हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल की हैं।

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