शरणार्थियों की नागरिकता के लिए केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना सीएए से संबंधित नहीं, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
LiveLaw News Network
15 Jun 2021 2:19 AM GMT
![National Uniform Public Holiday Policy National Uniform Public Holiday Policy](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2020/02/19/750x450_370427-national-uniform-public-holiday-policy.jpg)
Supreme Court of India
केंद्र ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) द्वारा दायर एक हस्तक्षेप आवेदन के जवाब में सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 28 मई, 2021 को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना का नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 से कोई संबंध नहीं है।
केंद्र सरकार के 28 मई,2021 के आदेश के तहत (i) गुजरात राज्य में मोरबी, राजकोट, पाटन और वडोदरा (ii) छत्तीसगढ़ राज्य में दुर्ग और बलौदाबाजार (iii) राजस्थान राज्य में जालोर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर और सिरोही (iv) हरियाणा राज्य में फरीदाबाद और (v) पंजाब राज्य में जालंधर जिला के कलेक्टर को (धारा 5 के तहत भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण के लिए या धारा 6 के तहत देशीयकरण प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए) के तहत केंद्र सरकार की शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार है।
केंद्र सरकार ने इस में अधिसूचना अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी) से संबंधित भारत के कुछ जिलों में रहने वाले व्यक्तियों के लिए भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए आमंत्रित किया है।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने एडवोकेट हारिस बीरन और एडवोकेट पल्लवी प्रताप के माध्यम से याचिका दायर की थी।
याचिका में कहा गया था कि,
"प्रतिवादी केंद्र सरकार ने इस न्यायालय को दिए गए आश्वासन को दरकिनार करते हुए हाल ही में जारी आदेश दिनांक 28.5.2021 के माध्यम से नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत परिकल्पित अपने दुर्भावनापूर्ण योजना को लागू करने का प्रय़ास किया है।"
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने याचिका में नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को चुनौती देते हुए कहा था कि केंद्र ने पहले कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियम नहीं बनाए गए हैं।
केंद्र द्वारा दायर जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना केवल विशेष मामलों में स्थानीय अधिकारियों को केंद्र सरकार की शक्ति सौंपने का प्रयास करती है।
केंद्र ने कहा कि,
"उक्त अधिसूचना विदेशियों को कोई छूट प्रदान नहीं करती है और केवल उन विदेशियों पर लागू होती है जिन्होंने कानूनी रूप से देश में प्रवेश किया है क्योंकि केंद्र सरकार ने नागरिकता अधिनियम की धारा 16 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल किया और पंजीकरण या प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता प्रदान करने के लिए अपनी शक्तियों को प्रत्यायोजित किया। यह प्रस्तुत किया जाता है कि यह बिना किसी विशिष्ट वर्गीकरण या छूट के केवल केंद्र की शक्ति स्थानीय अधिकारियों को सौंपी गई है।"
जवाबी हलफनामें में कहा गया है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 16 केंद्र सरकार को नागरिकता के आवेदनों पर निर्णय को तेजी से ट्रैक करने के लिए अपनी नागरिकता प्रदान करने वाली शक्तियों में से कुछ को ऐसे अधिकारी या प्राधिकरण को सौंपने की शक्ति प्रदान करती है जो निर्दिष्ट हो सकते हैं और इसी पद्धति को अतीत में कई बार नियोजित किया गया है।
यह प्रस्तुत किया गया है कि उक्त उपाय पहले कई मौकों पर किया गया है और यह काफी हद तक प्रशासनिक आवश्यकताओं का एक कार्य है। यह प्रस्तुत किया जाता है कि यह सीएए के माध्यम से उठाए गए विधायी कदमों से संबंधित नहीं है।"
केंद्र ने तर्क दिया कि जारी अधिसूचना विदेशियों के नागरिकता आवेदनों के शीघ्र निपटारन के उद्देश्य से निर्णय लेने के विकेंद्रीकरण की एक प्रक्रिया है और अब से प्रत्येक मामले की जांच के बाद जिला या राज्य स्तर पर निर्णय लिया जाएगा और विभिन्न विदेशी नागरिकों के बीच पात्रता मानदंड के संबंध में कोई छूट नहीं है।
जवाबी हलफनामें में कहा गया है कि,
" भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए मौजूदा कानून और प्रक्रिया को किसी भी तरह से अधिसूचना के माध्यम से संशोधित करने की मांग नहीं की गई है। यह प्रस्तुत किया जाता है कि किसी भी धर्म का कोई भी विदेशी किसी भी समय भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है। केंद्रीय सरकार उस आवेदन को कानून और नियमों के अनुसार तय करेगी।"