राजस्थान सिविल सेवा नियम | जांच में लंबा समय लगने की आशंका धारा 19 के तहत अनुशासनात्मक जांच को टालने का आधार नहीं: हाईकोर्ट
Amir Ahmad
30 Nov 2024 11:27 AM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अनुशासनात्मक जांच में लंबा समय लगने की संभावना राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1958 की धारा 19 (ii) को लागू करने और जांच को खत्म करने का कारण नहीं हो सकती।
न्यायालय ने यह भी कहा कि कर्मचारी द्वारा साक्ष्य को प्रभावित करने या छेड़छाड़ करने की आशंका विभाग की अपनी प्रणाली में विश्वास की कमी को दर्शाती है।
नियमों के नियम 19 में यह प्रावधान है कि जहां अनुशासनात्मक प्राधिकारी संतुष्ट हो कि दंड लगाने की प्रक्रिया सहित नियमों में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना व्यावहारिक नहीं है तो वह लिखित में कारण दर्ज करने के बाद ऐसे आदेश पारित कर सकता है जैसा वह उचित समझे।
जस्टिस दिनेश मेहता की पीठ पुलिस अधीक्षक के उस आदेश के खिलाफ रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कांस्टेबल के पद पर कार्यरत याचिकाकर्ता को सेवा से हटा दिया गया। याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप थे कि कांस्टेबल रहते हुए वह मादक पदार्थ से भरे वाहन की सुरक्षा कर रहा था। इस तरह ऐसे पदार्थों से जुड़े लोगों से उसकी मिलीभगत थी। इस मामले में प्रारंभिक जांच के आधार पर नियम 19 के तहत याचिकाकर्ता को सेवा से हटा दिया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि नियमों के तहत निर्धारित अनुशासनात्मक जांच की आवश्यकता को खत्म करने के लिए सरकार के पास कोई कारण या औचित्य नहीं है। इसके अलावा, जांच कार्यालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल नहीं किया। इसके विपरीत सरकार की ओर से दलील दी गई कि कांस्टेबल होने के नाते याचिकाकर्ता को मादक पदार्थों के खतरे को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन इसके बजाय वह डीलरों से मिलीभगत कर रहा था। इसलिए त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करने के लिए अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने विभाग में एक कड़ा संदेश भेजने के लिए नियम 19 (ii) के तहत याचिकाकर्ता को सेवाओं से बर्खास्त कर दिया।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विवादित आदेश के अनुसार दिए गए कारण यह थे कि नियमों के तहत अनुशासनात्मक जांच में काफी समय लगने की संभावना थी। याचिकाकर्ता द्वारा साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने और जांच को प्रभावित करने की संभावना थी।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा दर्ज किए गए कारण नियमों के नियम 19 (ii) के तहत अपेक्षित रूप से प्रासंगिक नहीं थे और कहा,
“जांच में काफी समय लगने की संभावना, जांच को समाप्त करने का कारण नहीं हो सकती। इसके अलावा, प्रतिवादियों की यह आशंका कि याचिकाकर्ता जांच को प्रभावित करेगा और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करेगा, प्रतिवादी विभाग की अपनी प्रणाली में विश्वास की कमी को दर्शाता है।”
इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को निलंबित करके साक्ष्यों से छेड़छाड़ की संभावना को कम किया जा सकता था। कहा कि यदि ऐसी आशंका थी तो प्रतिवादियों को अपने काम का आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
न्यायालय ने माना कि यदि SP के आदेश में दर्ज कारणों को बरकरार रखा जाता है तो जांच के संचालन से संबंधित प्रावधान उद्देश्यहीन हो जाएंगे।
न्यायालय ने SP के साथ-साथ अपीलीय प्राधिकारी के आदेश भी रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को 30 दिनों के भीतर बहाल करने और कानून के अनुसार आगे बढ़ने का आदेश दिया।
केस टाइटल: दिनेश बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।