मात्र स्कूल सर्टिफिकेट से ही तय नहीं हो सकती अपहरण पीड़िता की आयु: राजस्थान हाईकोर्ट

Amir Ahmad

4 Aug 2025 2:43 PM IST

  • मात्र स्कूल सर्टिफिकेट से ही तय नहीं हो सकती अपहरण पीड़िता की आयु: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को नाबालिग लड़की के अपहरण के आरोप से बरी करने के निचली अदालत का फैसला बरकरार रखते हुए कहा कि मात्र स्कूल द्वारा जारी सर्टिफिकेट यदि उसके पीछे कोई ठोस दस्तावेज या साक्ष्य न हो, तो वह किसी पीड़िता की आयु निर्धारित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि स्कूल सर्टिफिकेट केवल उस स्थिति में स्वीकार्य हो सकता है, जब वह स्कॉलरशिप रजिस्ट्रेशन में दर्ज प्रविष्टियों पर आधारित हो और वह प्रविष्टियां एडमिशन फॉर्म में माता-पिता द्वारा दर्ज जानकारी पर आधारित हों। लेकिन इस मामले में न तो कोई एडमिशन फॉर्मस न ही स्कॉलरशिप रजिस्ट्रेशन और न ही कोई अंकपत्र रिकॉर्ड पर लाया गया था। साथ ही स्कूल स्टाफ का भी कोई साक्ष्य नहीं दिया गया।

    जस्टिस फर्जन्द अली ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 35 के अनुसार, केवल किसी सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा संधारित रजिस्टर ही साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होता है। एक ऐसा सर्टिफिकेट, जिसकी सत्यता और जारीकर्ता स्पष्ट नहीं हो, उस पर किसी व्यक्ति की आयु तय नहीं की जा सकती।

    यह मामला एक व्यक्ति के विरुद्ध दर्ज बलात्कार और अपहरण के मामले से संबंधित था, जिसमें पीड़िता के पिता और राज्य सरकार द्वारा निचली अदालत के बरी करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। आरोपी पर IPC की धारा 363, 366 और 376 के तहत आरोप लगे थे।

    कोर्ट ने कहा कि धारा 363 के तहत दोषसिद्धि के लिए दो बातें सिद्ध करना आवश्यक होती हैं:

    1. लड़की 18 वर्ष से कम आयु की हो।

    2. उसे वैध संरक्षक की अनुमति के बिना ले जाया गया हो।

    ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न थे:

    1. क्या पीड़िता नाबालिग थी?

    2. क्या उसके साथ बलात्कार हुआ?

    कोर्ट ने पाया कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि लड़की घटना के समय नाबालिग थी।

    पीड़िता की आयु साबित करने के लिए स्कूल द्वारा जारी सर्टिफिकेट (Exhibit P-9) प्रस्तुत किया गया, जो जांच अधिकारी के समक्ष कभी प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे उसके सर्टिफिकेट की जांच नहीं हो सकी। साथ ही पीड़िता के पिता ने खुद स्वीकार किया कि लड़की की जन्मतिथि उसकी मां के कहने पर स्कूल में दर्ज की गई लेकिन मां को गवाही के लिए पेश नहीं किया गया।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि अस्थि परीक्षण (Ossification Test) के आधार पर आयु का निर्धारण अनुमानित होता है। उसमें सामान्यतः दो साल तक का अंतर हो सकता है। इस मामले में आयु 15 से 17 वर्ष के बीच बताई गई, जो केवल एक राय है इसका सटीक प्रमाण नहीं।

    बलात्कार के आरोप पर कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की स्वयं की गवाही से स्पष्ट है कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी और उस पर कोई दबाव नहीं था।

    इन सब तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने माना कि लड़की की आयु को लेकर कोई निर्णायक साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया गया और ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए बरी करने के आदेश में कोई त्रुटि नहीं थी।

    अतः याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: रईसुद्दीन बनाम राज्य राजस्थान एवं अन्य संबंधित याचिकाएं

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