कोमा में गए कर्मचारी को दो साल से वेतन न देना अमानवीय, अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: राजस्थान हाईकोर्ट ने 7 दिन में बकाया देने का आदेश दिया

Amir Ahmad

7 Oct 2025 12:33 PM IST

  • कोमा में गए कर्मचारी को दो साल से वेतन न देना अमानवीय, अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: राजस्थान हाईकोर्ट ने 7 दिन में बकाया देने का आदेश दिया

    राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस बेरुखी पर कड़ी नाराज़गी जताई, जिसमें एक सरकारी कर्मचारी, जो 2023 से कोमा में है, उसको दो साल से वेतन नहीं दिया जा रहा और उसके इलाज के बिलों की अदायगी भी नहीं की गई। अदालत ने इसे अमानवीय मनमाना और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया।

    जस्टिस रवि चिरानिया की पीठ ने कहा कि राज्य का यह रवैया न केवल संवेदनहीन है बल्कि कानून द्वारा स्थापित सिद्धांतों के भी विपरीत है। अदालत ने बिना राज्य का जवाब मांगे सीधे निर्देश दिया कि कर्मचारी के वेतन और चिकित्सीय बकाया की जांच 7 दिन के भीतर की जाए।

    हाईकोर्ट की पीठ ने कहा,

    “एक सरकारी सेवक जो पिछले एक साल से वेतन से वंचित है और पिछले दो साल से कोमा में है, उसकी आर्थिक स्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। अचानक आई स्वास्थ्य समस्या ने उसे विभाग की नजरों में डेडवुड बना दिया और विभाग उसके हालात से बेपरवाह है। यह न्यायालय इस अमानवीय और मनमानी रवैये को देखकर व्यथित है।”

    अदालत ने आगे कहा कि हर व्यक्ति को स्वस्थ और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। इस मामले में राज्य का रवैया संविधान के अनुच्छेद 21 का गंभीर उल्लंघन है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार कर्मचारी के मामले की जांच करे और यदि कोई वास्तविक कानूनी बाधा न हो तो सभी लंबित वेतन एवं मेडिकल बिलों का भुगतान तुरंत किया जाए।

    साथ ही अदालत ने निर्देश दिया कि भविष्य में भी मेडिकल बिलों का भुगतान बिना किसी प्रशासनिक बाधा के किया जाए।

    मामला

    याचिका वाणिज्य कर अधिकारी की पत्नी ने दायर की थी। उनका कहना था कि उनके पति को 2023 में ब्रेन हेमरेज हुआ, जिसके बाद वे कोमा में हैं। उन्हें 76% दिव्यांगता का प्रमाणपत्र भी जारी किया गया। इसके बावजूद विभाग न तो वेतन दे रहा है और न ही इलाज का खर्च उठा रहा है।

    राज्य की ओर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित वित्त सचिव (राजस्व) ने कहा कि उन्हें मामले की पूरी जानकारी नहीं है, पर उन्होंने अदालत को आश्वस्त किया कि वे शीघ्र ही इसे देखेंगे और समाधान करेंगे।

    अदालत ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 20(4) का हवाला दिया, जिसके अनुसार किसी सरकारी कर्मचारी को सेवा के दौरान दिव्यांगता आने पर न तो सेवा से हटाया जा सकता है और न ही पदावनत किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और समन्वय पीठों के कई फैसलों में यह स्पष्ट किया गया कि नियोक्ता अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता और दिव्यांग कर्मचारी को वेतन व लाभ देना उसकी संवैधानिक बाध्यता है।

    अदालत का निष्कर्ष

    अदालत ने कहा,

    “कोमा में पड़े व्यक्ति का इलाज बहुत महंगा होता है। ऐसे में जब उसे एक साल से वेतन नहीं मिला तो उसका परिवार किस स्थिति में होगा। इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं। वेतन और मेडिकल खर्च न देना न केवल अमानवीय बल्कि असंवैधानिक भी है।”

    अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह 7 दिन के भीतर वेतन व बिलों का निस्तारण करे और यदि कोई वास्तविक कानूनी बाधा हो तो उसे स्पष्ट रूप से दर्ज करे। साथ ही अदालत ने वित्त सचिव (राजस्व) से अपेक्षा जताई कि वे व्यक्तिगत रूप से इस आदेश के अनुपालन को सुनिश्चित करें।

    याचिका का निस्तारण करते हुए अदालत ने कर्मचारी और उसके परिवार को शीघ्र राहत देने का आदेश दिया।

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