"जनता की आवाज़ है चुना हुआ प्रतिनिधि": बिना प्रक्रिया अपनाए पंचायत सदस्यों को हटाने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने जताई सख्त आपत्ति
Amir Ahmad
21 July 2025 4:02 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने पंचायत सदस्यों को हटाने से जुड़े कई मामलों पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि वर्ष 1996 के राजस्थान पंचायती राज नियमों के नियम 22 में निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना हटाने के आदेश पारित किए जा रहे हैं।
जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने पाया कि जांच अधिकारी इन नियमों से भलीभांति अवगत नहीं हैं, जिससे आदेशों में गंभीर त्रुटियां हो रही हैं।
कोर्ट ने पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव, संभागीय आयुक्तों और जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया कि वे सभी पंचायत समितियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को नियम 22 के महत्व के बारे में सूचित करें ताकि भविष्य में चुने हुए जनप्रतिनिधियों को हटाते समय ऐसी गलतियों से बचा जा सके।
कोर्ट ने यह भी कहा कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुना हुआ प्रतिनिधि जनता की आवाज़ होता है और उसे उसके पद से हटाने में अत्यधिक सावधानी व निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन आवश्यक है।
क्या है नियम 22
नियम 22 के अनुसार, राज्य सरकार कार्रवाई से पहले मुख्य कार्यकारी अधिकारी या किसी अन्य अधिकारी से प्रारंभिक जांच करवा सकती है और एक महीने के भीतर रिपोर्ट मंगवाती है। यदि राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि धारा 38(1) के तहत कार्रवाई आवश्यक है तो स्पष्ट आरोप तय किए जाते हैं और संबंधित सदस्य से जवाब मांगा जाता है। इसमें साक्ष्यों की जांच, गवाहों से पूछताछ, विस्तृत जांच रिपोर्ट और प्रत्येक आरोप पर स्पष्ट निष्कर्ष देने की प्रक्रिया शामिल है।
कोर्ट का अवलोकन:
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"यह अदालत देख रही है कि कई मामलों में पंचायत सदस्यों को हटाने के आदेश नियम 22 की आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना पारित किए गए। ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी इन नियमों से भलीभांति परिचित नहीं हैं। सभी संभागीय आयुक्तों, जिला कलेक्टरों और पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देशित किया जाता है कि वे सभी पंचायत समितियों के सीईओ को इस नियम का सख्ती से पालन कराने के निर्देश दें, ताकि भविष्य में इस प्रकार की त्रुटियों से बचा जा सके।"
मामला:
यह आदेश ग्राम पंचायत पंवार, पंचायत समिति देवली के प्रशासक द्वारा दायर याचिका में पारित किया गया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों पर नियम 22 के तहत प्रक्रिया अपनाए बिना पद से हटा दिया गया।
याचिकाकर्ता का तर्क:
चार्जशीट दिए जाने के बाद कोई विधिवत जांच नहीं की गई न गवाहों के बयान दर्ज किए गए न ही अन्य साक्ष्यों पर विचार किया गया। केवल याचिकाकर्ता के उत्तर के आधार पर उसे पद से हटा दिया गया।
राज्य सरकार के वकील ने भी स्वीकार किया कि न तो गवाहों के बयान दर्ज किए गए और न ही अन्य दस्तावेजों पर विचार किया गया।
कोर्ट का निष्कर्ष:
"लोकतंत्र में चुना हुआ प्रतिनिधि जनता की आवाज़ होता है और जब तक उसका आचरण निंदनीय सिद्ध न हो या उसने अपने पद का दुरुपयोग न किया गया हो तब तक उसे पूरे कार्यकाल तक पद पर बने रहने का अधिकार है। यदि आरोप हैं, तो 1996 के नियम 22 के अंतर्गत पूरी प्रक्रिया अपनाना अनिवार्य है।"
कोर्ट ने यह पाते हुए कि याचिकाकर्ता को हटाने में नियम 22 का पालन नहीं हुआ, हटाने का आदेश निरस्त कर दिया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह नियम 22 का पूर्ण पालन करते हुए दोबारा विचार करे।
टाइटल: पूर्णमल वर्मा बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

