कृषि भूमि के बंटवारे के लिए दायर वाद का निपटारा सिविल कोर्ट द्वारा किया जा सकता है, यदि उसमें काश्तकारी अधिकारों से संबंधित कोई विवाद न हो: राजस्थान हाईकोर्ट
Amir Ahmad
14 Feb 2025 12:37 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि यदि कृषि भूमि के बंटवारे के लिए वाद दायर किया गया तो सिविल कोर्ट को बंटवारे के लिए दायर वाद में पूर्ण अधिकारिता प्राप्त है यदि उस वाद में काश्तकारी अधिकारों से संबंधित कोई विवाद न हो तो उस मामले में उस सीमित सीमा तक मामले को राजस्व न्यायालय को भेजा जाना चाहिए।
जस्टिस विनीत कुमार माथुर की पीठ एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के आदेश के विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं द्वारा बंटवारे के वाद को राजस्व न्यायालय को भेजने के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं का मामला यह था कि प्रतिवादियों ने बंटवारे के लिए वाद दायर किया, जो सिविल कोर्ट में लंबित था। निचली अदालत द्वारा तैयार किए गए मुद्दों में से एक भूमि के बंटवारे से संबंधित था जो कृषि प्रकृति की थी। इसलिए इसे राजस्व न्यायालय को भेजा जाना आवश्यक था।
इसके विपरीत प्रतिवादियों की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि भूमि की प्रकृति के बारे में कोई विवाद नहीं था न ही पक्षों के बीच कोई किरायेदारी विवाद था। वाद केवल विभाजन की डिक्री प्राप्त करने के लिए दायर किया गया था। इसलिए मामले को राजस्व न्यायालय में भेजने की आवश्यकता नहीं थी।
तर्कों को सुनने के बाद न्यायालय ने राजस्थान किरायेदारी अधिनियम, 1955 (अधिनियम) की धारा 242(1) का उल्लेख किया, जिसमें प्रावधान है कि "यदि किसी सिविल कोर्ट में कृषि भूमि से संबंधित किसी वाद में किरायेदारी अधिकारों के बारे में कोई प्रश्न उठता है। ऐसा प्रश्न पहले सक्षम अधिकार क्षेत्र वाले राजस्व न्यायालय द्वारा निर्धारित नहीं किया गया तो सिविल न्यायालय किरायेदारी की दलील पर एक मुद्दा तैयार करेगा और उस मुद्दे के निर्णय के लिए उचित राजस्व न्यायालय को रिकॉर्ड करेगा।"
न्यायालय ने आगे कहा कि यह एक स्थापित कानून है कि जहां कोई राजस्व विवाद शामिल नहीं है, वहां सिविल न्यायालय के पास संपत्तियों के विभाजन के प्रश्न को तय करने का अधिकार है।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने विभाजन के मुकदमे में ट्रायल कोर्ट द्वारा तैयार किए गए मुद्दों का अवलोकन किया। इस बात पर प्रकाश डाला कि तैयार किए गए मुद्दे कृषि भूमि के किरायेदारी के संबंध में किसी भी विवाद को नहीं दर्शाते हैं। इसलिए सिविल कोर्ट के पास मुकदमे का फैसला करने का अधिकार है।
तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: स्वर्गीय सांवरमल शर्मा बनाम श्रीमती दीता देवी और अन्य की एलआर।

