राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य के AAG के रूप में पद्मेश मिश्रा की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया
Amir Ahmad
2 Sept 2024 12:13 PM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में राजस्थान सरकार को एडवोकेट द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान राज्य के लिए एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) के रूप में पद्मेश मिश्रा की नियुक्ति को चुनौती दी गई।
जस्टिस अनिल कुमार उपमन की पीठ ने याचिका पर सुनवाई की।
पद्मेश मिश्रा सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस पीके मिश्रा के बेटे हैं।
वर्तमान विवाद से संबंधित तथ्यों से यह पता चलता है कि पद्मेश मिश्रा को राज्य मुकदमा नीति 2018 के अनुसार पद के लिए पात्र होने के लिए अपेक्षित अनुभव पूरा न करने के बावजूद AAG के रूप में नियुक्त किया गया।
उक्त नीति की धारा 14 जो राज्य के लिए वकील की नियुक्ति का प्रावधान करती है, के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में पैनल वकील के रूप में नियुक्ति के लिए न्यूनतम पांच वर्ष और AAG के रूप में नियुक्ति के लिए दस वर्ष का अनुभव आवश्यक है।
बात यह है कि पद्मेश मिश्रा के नामांकन नंबर के अनुसार उनके पास पांच वर्ष की प्रैक्टिस है। हालांकि यह आरोप लगाया गया कि विधि विभाग ने अधिसूचना के माध्यम से नीति में एक नई उप-धारा 14.8 पेश की, जिसमें प्रावधान किया गया कि नीति में निहित किसी भी बात के बावजूद उचित स्तर के प्राधिकारी को संबंधित क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता पर विचार करने के बाद किसी भी पद पर किसी भी वकील को नियुक्त करने का अधिकार होगा।
गौरतलब है कि पद्मेश मिश्रा को शुरू में 20 अगस्त की अधिसूचना के जरिए सुप्रीम कोर्ट में पैनल वकील के तौर पर नियुक्त किया गया था।
हालांकि महज तीन दिन बाद ही इसे वापस ले लिया गया। नीति में बदलाव और उसके बाद AAG के तौर पर उनकी नियुक्ति के लिए 23 अगस्त की अधिसूचना जारी कर दी गई।
पद्मेश मिश्रा के AAG के तौर पर कार्यभार संभालने और नीति में बदलाव को प्रभावित करने वाली अधिसूचना पर तत्काल रोक लगाने की प्रार्थना करते हुए याचिकाकर्ता ने राजस्थान सरकार द्वारा उचित प्राधिकारी को बेलगाम और अप्रतिबंधित शक्तियां देने के कृत्य को कानून के विपरीत और स्पष्ट रूप से मनमाना करार दिया।
यह तर्क दिया गया कि नीति में क्लॉज 14.8 को शामिल करके AAG के तौर पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम दस साल के अभ्यास के अनिवार्य नियम को कमजोर नहीं किया जा सकता। इसके अलावा जिस तेज गति से अधिसूचनाएं जारी और फिर से जारी की गईं, उससे पता चलता है कि पद्मेश मिश्रा पर कृपा बरसाने के लिए यह काम किया गया और इस तरह उनकी नियुक्ति पूरी तरह से अवैध और मनमाना है।