NEET-UG 2025: बिजली कटौती और अन्य गड़बड़ियों को लेकर पुनः परीक्षा या बोनस अंकों की मांग हाईकोर्ट में खारिज
Amir Ahmad
8 July 2025 7:18 AM

राजस्थान हाईकोर्ट ने NEET-UG 2025 परीक्षा के दौरान बिजली कटौती और खराब मौसम जैसी समस्याओं के आधार पर पुनः परीक्षा कराने या बोनस अंक देने की मांग को खारिज कर दिया। ये याचिकाएं सीकर जिले के 31 परीक्षार्थियों द्वारा दायर की गई थीं।
जस्टिस समीर जैन की एकल पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह मामला "de minimis non curat lex" के सिद्धांत के अंतर्गत आता है यानी कानून तुच्छ बातों की परवाह नहीं करता।
कोर्ट ने माना कि सीकर में कुल 98 परीक्षा केंद्र थे, जिनमें से लगभग 15 केंद्रों पर बिजली कटौती की समस्या आई, जिससे करीब 5,390 परीक्षार्थी प्रभावित हुए। हालांकि, इन सभी में से सिर्फ 31 स्टूडेंट ने कोर्ट का रुख किया, जो एक बहुत ही मामूली संख्या है।
अदालत ने कहा कि इतनी सीमित और व्यक्तिगत शिकायतें पूरे देश में आयोजित एक बड़े स्तर की परीक्षा को अवैध ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि परीक्षा के दौरान बिजली 5 से 28 मिनट तक गई थी, जिससे उनकी एकाग्रता और प्रदर्शन पर असर पड़ा।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जिन स्टूडेंट ने इन गड़बड़ियों के बिना परीक्षा दी उनके मुकाबले वे असमान परिस्थिति में थे। इसलिए उन्हें विशेष राहत मिलनी चाहिए।
राज्य सरकार ने जवाब में कहा कि कुल परीक्षार्थियों में से केवल 0.575 प्रतिशत स्टूडेंट्स ने शिकायत की है और बाकी 99.5 प्रतिशत स्टूडेंट्स को किसी तरह की कोई आपत्ति नहीं थी। साथ ही सरकार ने यह भी बताया कि एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई है, जिसने जांच कर यह निष्कर्ष निकाला कि प्रभावित और अप्रभावित केंद्रों पर परीक्षा की समयावधि समान रही। इतना ही नहीं कई स्टूडेंट्स ने उन केंद्रों से 600 तक अंक भी प्राप्त किए, जिससे यह साबित होता है कि उनके प्रदर्शन पर कोई व्यापक प्रभाव नहीं पड़ा।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि बिजली कटौती बारिश और तूफ़ान जैसी परिस्थितियों के कारण हुई थी, जो कि अप्रत्याशित प्राकृतिक घटनाएं हैं और किसी के नियंत्रण में नहीं होतीं। इसलिए यह तर्क नहीं माना जा सकता कि राज्य सरकार को बिजली आपूर्ति की गारंटी देनी चाहिए थी।
कोर्ट ने यह भी माना कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और स्टूडेंट्स के अच्छे प्रदर्शन से यह स्पष्ट होता है कि किसी तरह की प्रणालीगत गड़बड़ी नहीं थी।
इन तमाम तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ऐसे मामलों में 22 लाख परीक्षार्थियों के हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती। खासकर जब शिकायत करने वाले छात्रों की संख्या नगण्य है और उनके पास कोई ठोस सबूत भी नहीं है।