न्यूनतम मजदूरी के आधार पर मुआवजा तय करना तर्कसंगत नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने मृतक MBBS स्टूडेंट के परिजनों को मुआवजा बढ़ाकर एक करोड़ किया
Amir Ahmad
9 May 2025 2:46 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मृतक द्वितीय वर्ष के MBBS स्टूडेंट के परिजनों को मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) द्वारा दिए गए लगभग 12 लाख के मुआवजे को बढ़ाकर ₹1 करोड़ से अधिक कर दिया। अदालत ने कहा कि मृतक की आय की संभावनाओं का आकलन कुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी के आधार पर करना पूरी तरह से अवास्तविक, अत्यधिक तकनीकी और सीमित सोच का परिणाम है।
जस्टिस अरुण मोंगा ने टिप्पणी की कि युवा पेशेवरों से संबंधित मामलों में अदालतों को कठोर अंकगणितीय गणनाओं और आय प्रमाण की जिद से ऊपर उठना चाहिए। न्यूनतम मजदूरी आधारित दृष्टिकोण शिक्षा, आकांक्षा और प्रतिभा को कमतर करता है यह भी जोड़ा गया।
न्यायालय ने कहा,
"दिए गए निर्णय का अवलोकन करने के बाद मैं यह कह सकता हूं कि न्यायाधिकरण का दृष्टिकोण पूरी तरह अवास्तविक, अत्यधिक तकनीकी और संकीर्ण था, जिससे मृतक की आय की संभावनाओं का अत्यंत कम मूल्यांकन हुआ। MACT ने मृतक सुनील बिश्नोई, जो NEET पास कर MBBS के दूसरे वर्ष में अध्ययनरत थे, उनकी आय 7,774 प्रतिमाह (कुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी) मानते हुए 12,52,429 का मुआवजा दिया था।"
अदालत ने यह भी कहा कि यथार्थवादी मुआवजा न केवल परिवार को न्याय सुनिश्चित करता है बल्कि लापरवाह चालक के लिए निवारक प्रभाव भी उत्पन्न करता है। सड़क सुरक्षा में जवाबदेही को सुदृढ़ करता है।
यह अपील मृतक के माता-पिता द्वारा दायर की गई, जिसमें उन्होंने अपने बेटे की मृत्यु के बाद ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए मुआवजे को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि न्यायाधिकरण ने मृतक की शैक्षणिक पृष्ठभूमि और भविष्य की आय को नजरअंदाज किया।
बीमा कंपनी का तर्क था कि मृतक उस समय कोई आय नहीं कमा रहा था। वास्तव में वह परिवार पर बोझ था क्योंकि उसकी पढ़ाई का खर्च परिजन उठा रहे थे।
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के निर्णय को गंभीर त्रुटि और अत्यधिक कम आकलन बताया।
अदालत ने कहा,
“यह सर्वविदित है कि MBBS या इंजीनियरिंग जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद ऐसे स्टूडेंट न्यूनतम मजदूरी से कहीं अधिक आय अर्जित करने की क्षमता रखते हैं। ट्राइब्यूनल ने अत्यधिक रूढ़ और सीमित सूत्र अपनाकर मृतक की संभावित आय का गलत आकलन किया।”
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले Bishnupriya Panda बनाम Basanti Manjari Mohanty (2013) का हवाला दिया, जिसमें 4वें वर्ष के MBBS स्टूडेंट की काल्पनिक आय 50,000 प्रतिमाह तथा 40% भविष्य की संभावनाओं के साथ मान्य की गई।
इस पृष्ठभूमि में राजस्थान हाईकोर्ट ने मृतक की काल्पनिक आय को 70,000 प्रतिमाह माना और उसमें 40% भविष्य संभावनाएं जोड़कर कुल 98,000 प्रतिमाह आंका उसमें से 50% (49,000) स्वयं व्यय के रूप में घटाकर शेष राशि को आश्रितों की आय माना गया।
उपयुक्त मल्टीप्लायर लागू करने के बाद, संशोधित मुआवजा 1,05,84,000 निर्धारित किया गया।
अतः अपील स्वीकार कर ली गई।
केस टाइटल: इंद्रा एवं अन्य बनाम जगदीश चंद्र एवं अन्य