कोई वैधानिक आधार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदूषण बोर्ड द्वारा ईंट-भट्टों पर लगाए पर्यावरण क्षतिपूर्ति आदेश रद्द किए
Amir Ahmad
10 Nov 2025 1:30 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (RSPCB) द्वारा ईंट-भट्ठा संचालकों पर लगाई गई पर्यावरण क्षतिपूर्ति को अवैध ठहराते हुए सभी संबंधित आदेशों को रद्द कर दिया। अदालत ने स्पष्ट कहा कि जब तक विधिवत नियम और विनियम अधिसूचित नहीं किए जाते, बोर्ड के पास ऐसी क्षतिपूर्ति वसूलने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।
जस्टिस सुनील बेनिवाल की सिंगल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के D.P.C.C. बनाम लॉधी प्रॉपर्टी कंपनी लिमिटेड के फैसले पर भारी निर्भरता जताते हुए कहा कि बिना विधायी अनुमति और बिना अधिसूचित गणना-प्रणाली के RSPCB पर्यावरण क्षतिपूर्ति नहीं वसूल सकता।
अदालत ईंट-भट्ठा संचालकों की कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। संचालकों को 2021 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के निर्देशों के आधार पर RSPCB ने नोटिस जारी किए थे, जिनमें आरोप था कि वे 'कंसेंट टू ऑपरेट' के बिना संचालन कर रहे थे।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि RSPCB को कानून के तहत पर्यावरण क्षतिपूर्ति लगाने का अधिकार प्राप्त नहीं है। बोर्ड अधिकतम NGT के समक्ष आवेदन कर सकता है और केवल NGT ही आवश्यक निर्देश जारी कर सकता है। याचिकाओं में यह भी कहा गया कि क्षतिपूर्ति किसी निर्धारित सूत्र के बिना मनमाने ढंग से और बिना किसी पारदर्शिता के तय की गई। साथ ही बोर्ड द्वारा अपनाई गई कथित गणना पद्धति को अधिसूचित नहीं किया गया, इसलिए उसका कोई वैधानिक बल नहीं था।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए रेखांकित किया कि किसी भी बोर्ड को क्षतिपूरक या पुनर्भरणात्मक हर्जाना वसूलने का अधिकार तभी होगा, जब नियमों और विनियमों में सिद्धांत और प्रक्रिया का विस्तार से उल्लेख हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारदर्शिता, निष्पक्षता और निश्चित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि पर्यावरणीय क्षति के निर्धारण और हर्जाने की गणना के तरीकों से संबंधित नियम अधिसूचित किए जाएं।
इसी आधार पर हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि किसी भी तरह की वैधानिक रूपरेखा या नियम मौजूद नहीं हैं, इसलिए RSPCB की ओर से जारी किए गए नोटिस और क्षतिपूर्ति की मांग कानून सम्मत नहीं है। बोर्ड का मौजूदा फॉर्मूला केवल दिशानिर्देशों पर आधारित है, जो बिना किसी विधायी स्वीकृति के हैं और इसलिए अवैध हैं।
RSPCB ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने NGT के आदेश को चुनौती नहीं दी, जिसके आधार पर कार्रवाई की गई। अदालत ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि जब निरीक्षण और क्षतिपूर्ति वसूली की पूरी प्रक्रिया RSPCB द्वारा की गई तो वह एक स्वतंत्र कार्रवाई है। उसे सीधे हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। विशेषकर तब जब वास्तविक मुद्दा बोर्ड की अधिकार-सीमा और उसकी विधिक क्षमता का हो।
अंत में कोर्ट ने सभी नोटिसों को रद्द करते हुए याचिकाओं को स्वीकार कर लिया। साथ ही निर्देश दिया कि यदि बोर्ड ने कोई धनराशि वसूली है तो उसे छह सप्ताह के भीतर वापस किया जाए।

