राजस्थान हाईकोर्ट ने अतिक्रमण मामले में तत्कालीन जोधपुर कलेक्टर, एसडीओ, तहसीलदार को पक्ष बनाया

Amir Ahmad

19 Nov 2024 12:56 PM IST

  • राजस्थान हाईकोर्ट ने अतिक्रमण मामले में तत्कालीन जोधपुर कलेक्टर, एसडीओ, तहसीलदार को पक्ष बनाया

    भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित अवमानना ​​मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने याचिकाकर्ता को तत्कालीन संबंधित कलेक्टर, उपखंड अधिकारी और तहसीलदार को पक्ष बनाने का निर्देश दिया, जिससे उनका पक्ष जाना जा सके साथ ही उन्हें चेतावनी दी कि यदि वे न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें जेल की सजा सहित दंड दिया जा सकता है।

    चीफ जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस मुन्नुरी लक्ष्मण की खंडपीठ याचिकाकर्ता द्वारा दायर अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें जिला कलेक्टर, जोधपुर द्वारा न्यायालय द्वारा 7 फरवरी, 2022 को पारित आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने का आरोप लगाया गया, जो कि न्यायालय द्वारा 30 जनवरी, 2019 के आदेश में गठित सार्वजनिक भूमि संरक्षण प्रकोष्ठ, जोधपुर के अध्यक्ष भी थे।

    याचिकाकर्ता का मामला था कि सार्वजनिक भूमि संरक्षण प्रकोष्ठ का गठन अतिक्रमण के सभी मामलों को तय करने के लिए किया गया। भले ही जमीन पंचायत क्षेत्र या नगरपालिका क्षेत्र में स्थित हो। इसके संबंध में 7 फरवरी, 2022 के अपने आदेश के तहत न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा कलेक्टर के समक्ष दायर अभ्यावेदन पर तीन महीने के भीतर फैसला किया जाएगा। याचिकाकर्ता द्वारा अभ्यावेदन दायर किया गया तो उस पर लंबे समय तक कार्रवाई नहीं की गई। इस साल 24 मई को यानी दो साल से अधिक समय के बाद ही फैसला हुआ। इसके अलावा, जवाब में यह नहीं बताया गया कि न्यायालय के आदेश का पालन न करने में इतनी देरी क्यों हुई।

    रिकॉर्ड देखने के बाद न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय के संबंधित आदेश पारित होने के बाद किसी ने भी इस मामले की जांच नहीं की कि क्या कार्रवाई लोक भूमि संरक्षण प्रकोष्ठ, जोधपुर द्वारा की जानी थी या स्थानीय निकाय द्वारा।

    पीठ ने कहा,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि हाईकोर्ट के आदेश पारित होने के बाद किसी ने भी इस मामले की जांच नहीं की कि क्या कार्रवाई लोक भूमि संरक्षण प्रकोष्ठ, जोधपुर द्वारा की जानी थी या स्थानीय निकाय द्वारा।"

    इसमें कहा गया कि 2023 में अवमानना ​​याचिका दायर किए जाने के बाद ही अधिकारी मामले की जांच करने के लिए पहली बार हरकत में आए।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "इस न्यायालय को लगता है कि जहां अवमानना ​​याचिकाएं दायर की जाती हैं। अवमानना ​​याचिकाओं पर निर्णय होने से पहले कार्यालय के प्रभारी अधिकारी और न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य अधिकारियों को ट्रांसफर कर दिया जाता है। उनके स्थान पर नए अधिकारी आ जाते हैं। इस तरह से न केवल अवमानना ​​याचिकाएं लंबित रहती हैं, बल्कि न्यायालय के आदेश का भी पालन नहीं होता। इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने संबंधित कलेक्टर, उप-विभागीय अधिकारी और तहसीलदार को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया, जो 2022 के न्यायालय के आदेश पारित होने की तिथि पर कार्यालय में थे, जिससे उन्हें नोटिस जारी किए जा सकें।”

    उन्होंने रेखांकित किया कि याचिकाकर्ता को संबंधित कलेक्टर, उप-विभागीय अधिकारी और तहसीलदार को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया जाता है, जो आदेश पारित होने की तिथि पर कार्यालय में थे, जिससे उन्हें नोटिस जारी किए जा सकें और यदि यह पाया जाता है कि उन्होंने इस न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया तो जेल की सजा सहित उचित दंड आदेश पारित किया जा सके।

    तदनुसार मामले को चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया गया।

    केस टाइटल: महेश कुमार पाल बनाम श्री टी. रविकांत और अन्य।

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