राजस्थान हाईकोर्ट की फटकार: दुकानों की नीलामी में बाधा डालने वाले किरायेदारों पर 50,000 जुर्माना, कहा- कपटपूर्ण आचरण अस्वीकार्य

Amir Ahmad

10 Nov 2025 5:12 PM IST

  • राजस्थान हाईकोर्ट की फटकार: दुकानों की नीलामी में बाधा डालने वाले किरायेदारों पर 50,000 जुर्माना, कहा- कपटपूर्ण आचरण अस्वीकार्य

    राजस्थान हाईकोर्ट ने दुकानों की नीलामी प्रक्रिया को बाधित करने और महत्त्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर अदालत को गुमराह करने के प्रयास के लिए दो किरायेदारों पर कुल 50,000 की लागत लगाते हुए कड़ी फटकार लगाई।

    जस्टिस संजीत पुरोहित की एकल पीठ ने कहा कि जब याचिकाकर्ताओं ने स्वयं पहली नीलामी प्रक्रिया में हिस्सा लिया और बोली राशि जमा न करके प्रक्रिया को असफल कर दिया तो वे बाद की नीलामी को चुनौती देने का अधिकार नहीं रखते।

    अदालत ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ताओं के आचरण से ग्राम पंचायत को गंभीर आर्थिक नुकसान हुआ और यह न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण है।

    कोर्ट ने कहा,

    “अदालत ऐसे कपटपूर्ण और अनैतिक कदमों की कड़ी निंदा करती है। कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करके न केवल ग्राम पंचायत को वित्तीय क्षति पहुंचाई गई, बल्कि न्यायिक मशीनरी को भी भटकाने का प्रयास किया गया।”

    दुकानें वर्ष 2001-02 से याचिकाकर्ताओं को किरायेदारी पर दी गई थीं। वर्ष 2024 में उनकी मरम्मत एवं रखरखाव के लिए दुकानें खाली करने का नोटिस जारी किया गया, जिसमें मरम्मत के बाद दुकानें लौटाने का आश्वासन दिया गया था।

    याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि मरम्मत के बाद दुकानें वापस देने के बजाय सरकार ने उनकी नीलामी का नोटिस जारी कर दिया। इस पर उन्होंने अदालत में चुनौती दी और प्रारंभिक तौर पर नीलामी पर रोक भी मिल गई।

    राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ताओं ने कई महत्वपूर्ण तथ्य छिपाए। राज्य का कहना था कि मरम्मत के लिए जारी प्रारंभिक नोटिस के बावजूद दुकानें खाली नहीं की गईं और पुलिस की सहायता लेकर ही कब्जा लिया जा सका।

    याचिकाकर्ताओं ने इस नोटिस के खिलाफ सिविल वाद भी दायर किया, जो खारिज हो गया और अपील भी असफल रही। इसके बावजूद उन्होंने पुनः एक नई याचिका दायर कर समान कार्रवाई को चुनौती दी।

    सरकार ने यह भी बताया कि दुकानों की नीलामी पहले भी कराई गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं के भाई ने बोली लगाई और सबसे ऊंची बोली लगाई लेकिन बाद में राशि जमा न करने के कारण नीलामी निरस्त हो गई, जिससे ग्राम पंचायत को नुकसान हुआ।

    याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सिविल वाद उन्होंने बेदखली नोटिस के खिलाफ दायर किया था जबकि वर्तमान याचिका नीलामी के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि पहली नीलामी में उनके भाई ने हिस्सा लिया न कि उन्होंने।

    अदालत ने सभी तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि बेदखली नोटिस के खिलाफ दायर सिविल वाद महत्वपूर्ण तथ्य था और इसे छिपाया नहीं जा सकता था।

    अदालत ने यह भी माना कि घटनाक्रम को देखते हुए याचिकाकर्ता और उनका भाई मिलीभगत में कार्य कर रहे थे। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि पहली नीलामी में स्वेच्छा से भाग लेने के बाद दूसरी नीलामी को चुनौती देना 'एस्टॉपल', 'वावेयर' और 'एक्विएसेंस' के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

    अदालत ने जोर देकर कहा कि संवैधानिक न्यायालय में याचिका दायर करने का पहला और अनिवार्य सिद्धांत यह है कि याचिकाकर्ता साफ, सच्ची और संपूर्ण जानकारी के साथ अदालत का रुख करे। न्यायालय में तथ्यों को छिपाकर या भ्रम पैदा करके राहत की मांग करना अस्वीकार्य है।

    अंततः कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ताओं पर 50,000 की लागत लगाई।

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