लोकतंत्र और अकादमिक अनुशासन में संतुलन ज़रूरी: छात्र संघ चुनावों पर राजस्थान हाईकोर्ट के भविष्यगत दिशा-निर्देश
Amir Ahmad
22 Dec 2025 1:50 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनावों को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि छात्र लोकतंत्र और अकादमिक अनुशासन एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं बल्कि दोनों का संतुलन ही उच्च शिक्षा संस्थानों की मजबूती का आधार है। कोर्ट ने 2025-26 के लिए छात्र संघ चुनाव न कराए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया, लेकिन साथ ही भविष्य के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए।
जस्टिस समीर जैन ने कहा कि याचिकाकर्ता छात्रों के पास इस मामले में लोकस स्टैंडी नहीं है और बिना किसी ठोस कानूनी या मौलिक अधिकार के उल्लंघन के पूर्व-निर्णयात्मक अवस्था में दायर याचिकाओं पर राहत नहीं दी जा सकती। हालांकि, कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि किसी याचिका को खारिज करते समय भी संवैधानिक न्यायालय के पास यह अधिकार रहता है कि वह सुशासन, संस्थागत जवाबदेही और बार-बार होने वाले मुकदमों से बचाव के लिए उपयुक्त भावी निर्देश जारी करे।
कोर्ट ने कहा कि छात्र संघ चुनाव लोकतांत्रिक मूल्यों, नेतृत्व क्षमता और नागरिक जिम्मेदारियों के विकास का एक अहम माध्यम हैं, लेकिन यह प्रक्रिया इस तरह संचालित होनी चाहिए कि शिक्षा संस्थानों का मूल उद्देश्यअकादमिक उत्कृष्टता और अनुशासन प्रभावित न हो। इसी व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए अदालत ने यह निर्देश दिए कि ये दिशा-निर्देश आगामी वर्षों में लागू होंगे और वर्तमान सत्र के छात्र संघ चुनावों पर लागू नहीं होंगे।
अदालत ने छात्रों से अपेक्षा जताई कि वे छात्र संघ चुनावों से संबंधित किसी भी शिकायत को पहले संबंधित विश्वविद्यालय प्राधिकरणों के समक्ष उठाएं और सीधे अदालत का रुख करना अपवाद होना चाहिए, न कि सामान्य प्रक्रिया। राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि वह 19 जनवरी, 2026 को याचिकाकर्ताओं को अपनी बात रखने का प्रभावी अवसर दे और उस पर एक कारणयुक्त निर्णय ले, जिसे औपचारिक रूप से दर्ज और अधिसूचित किया जाए। इसके बाद आगामी शैक्षणिक वर्षों के लिए छात्र संघ चुनावों की एक व्यावहारिक और कारगर कार्यप्रणाली तय की जाए।
हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालयों और राज्य को यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि छात्रों से विभिन्न मदों में वसूली गई फीस, जिसमें चुनाव शुल्क भी शामिल है, उसके संबंध में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे। इसके लिए छात्र संघ चुनाव बोर्ड या समिति का गठन और रखरखाव आवश्यक बताया गया, जो चुनाव से जुड़े निर्णयों के लिए उत्तरदायी हो और छात्र प्रतिनिधियों को उचित सुनवाई का अवसर दे।
भविष्य में छात्र संघ चुनावों के संचालन को लेकर कोर्ट ने कहा कि सामान्यतः हर शैक्षणिक वर्ष में मार्च माह में चुनाव कैलेंडर जारी किया जाना चाहिए और उसका पालन किया जाना चाहिए। किसी भी विचलन के लिए ठोस कारण लिखित रूप में दर्ज करना होगा। चुनाव राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव दिशा-निर्देश, 2017 के अनुरूप तय समयसीमा में कराए जाएं सिवाय असाधारण परिस्थितियों के। चुनाव की प्रक्रिया प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या मिश्रित रूप में होगी या नहीं, इसका निर्णय कुलपति या नामित चुनाव प्राधिकरण करेगा। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि छात्र संघ चुनावों में अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप न हो और पात्रता संबंधी नियमों का सख्ती से पालन किया जाए।
अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि चुनावों के दौरान विश्वविद्यालय परिसरों का उपयोग इस प्रकार न हो, जिससे पढ़ाई, परीक्षाएं, शोध कार्य, पुस्तकालय या प्रयोगशालाओं की गतिविधियां बाधित हों। शिक्षा प्रदान करना सर्वोच्च प्राथमिकता है और इसे किसी भी स्थिति में प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए विश्वविद्यालय चुनाव आयुक्त या सक्षम प्राधिकारी को उचित प्रतिबंध और नियम तय करने की स्वतंत्रता दी गई।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं और एमिक्स क्यूरी की ओर से दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट के लिंगदोह समिति संबंधी निर्देशों के अनुसार हर वर्ष सत्र शुरू होने के 6 से 8 सप्ताह के भीतर छात्र संघ चुनाव कराना अनिवार्य है और यह छात्रों के अनुच्छेद 19 के तहत संघ बनाने के मौलिक अधिकार से जुड़ा है। वहीं राज्य की ओर से कहा गया कि मतदान या चुनाव में भाग लेना केवल वैधानिक अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं, और कुछ गिने-चुने छात्र हजारों विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। यह भी तर्क दिया गया कि आंतरिक उपायों का सहारा लिए बिना याचिकाएं दायर की गईं, इसलिए वे समय से पूर्व थीं।
इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य की प्रारंभिक आपत्तियों को स्वीकार किया और याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना किसी ठोस मांग या आंतरिक प्रतिनिधित्व के, केवल आशंकाओं के आधार पर रिट जारी नहीं की जा सकती। इसी के साथ अदालत ने यह संदेश भी दिया कि भविष्य में छात्र संघ चुनाव लोकतांत्रिक मूल्यों और अकादमिक अनुशासन के संतुलन के साथ ही कराए जाने चाहिए।

