राजस्थान हाइकोर्ट ने रजिस्ट्रार के समक्ष आर्डर श्रेणी में निर्विरोध मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए मसौदा SOP तैयार करने के लिए समिति का गठन किया

Amir Ahmad

20 Feb 2024 10:55 AM GMT

  • राजस्थान हाइकोर्ट ने रजिस्ट्रार के समक्ष आर्डर श्रेणी में निर्विरोध मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए मसौदा SOP तैयार करने के लिए समिति का गठन किया

    राजस्थान हाइकोर्ट ने अदालत के समक्ष आर्डर श्रेणी में गैर-विवादित मामलों को अनावश्यक रूप से सूचीबद्ध करने से पैदा हुए बोझ को हल करने के लिए अपनी सिफारिशें देने के लिए एडवोकेट जनरल की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया।

    जस्टिस समीर जैन की एकल न्यायाधीश पीठ 12- 12- 2024 को आर/एन के लिए पोस्ट की गई सिविल रिट याचिका पर विचार कर रही थी। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील द्वारा पीएफ और अपेक्षित नोटिस दाखिल नहीं करने के कारण मामला आर्डर' श्रेणी में लिया गया।

    जयपुर में बैठी पीठ ने आदेश में कहा,

    "हाईकोर्ट के नियम रजिस्ट्रार को उन मामलों से निपटने की अनुमति देते हैं, जिनमें योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि केवल प्रक्रियात्मक अनियमितताओं को दूर करने के लिए आदेश पारित करना होता है। यह न्यायालय बार के सदस्यों और कर्मचारियों द्वारा सामना की जा रही परिचालन कठिनाइयों के प्रति सहानुभूतिहीन नहीं है। भारी वाद सूचियों के कारण न्यायालयों से जुड़े हुए हैं, जिनमें अधिकांश मामले 'पहुँच नहीं पाते' हैं।”

    अदालत ने 2015 में दायर अन्य सिविल रिट याचिका का भी उल्लेख किया, जो प्रतिवादी पर सेवा न देने के कारण लगातार आर्डर श्रेणी में सूचीबद्ध हो रही है।

    जब उक्त मामला अदालत द्वारा उठाया गया तो बार के सदस्यों ने कहा कि कीमती न्यायिक समय केवल प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के कारण बर्बाद होता है, जिसे राजस्थान हाइकोर्ट नियम 1952 के नियम 7 और 10 के अनुसार रजिस्ट्रार के समक्ष हल किया जा सकता है।

    इन नियमों के अनुसार रजिस्ट्रार (न्यायिक) आर्डर कैटेगरी में आने वाले निर्विवाद मामलों से निपट सकते हैं। यह ऐसे प्रथा है, जिसका वर्तमान में दिल्ली हाइकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी पालन किया जाता है।

    इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि रजिस्ट्रार (न्यायिक) द्वारा शक्तियों का प्रयोग न्यायालयों के अधिकार पर अतिक्रमण नहीं करता है और किसी भी विवादित मामले को हमेशा न्यायालयों में भेजा जा सकता है, क्योंकि न्यायालय नोटिस की सेवा आदेश पारित करने वाला पहला प्राधिकारी है।

    जस्टिस जैन ने बार के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत प्रस्तुतियों पर विचार किया। एडवोकेट जनरल से पूछताछ करने पर उन्होंने रजिस्ट्रार के समक्ष आर्डर कैटेगरी में प्रक्रियात्मक मामलों को सूचीबद्ध करने के संबंध में अन्य सदस्यों द्वारा की गई प्रस्तुतियों से भी सहमति व्यक्त की।

    पिछले दो सप्ताह में अदालत को पता चला कि कुल सूचीबद्ध 8666 मामलों में से लगभग 25 प्रतिशत ऑर्डर कैटेगरी में आते हैं। इसलिए हाइकोर्ट नियमों में प्रासंगिक नियमों की जांच करने के बाद अदालत ने ऐसे मामलों की सूची के संबंध में मसौदा SOP तैयार करने के लिए बार के निम्नलिखित सदस्यों की समिति गठित की-

    i) राजेंद्र प्रसाद (ii) ए.के. शर्मा (iii) प्रहलाद शर्मा (iv) अनिता अग्रवाल (v) सुनील समदरिया ।

    समिति को छह सप्ताह के भीतर चीफ जस्टिस/फुल कोर्ट द्वारा विचार हेतु रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया।

    केस टाइटल- पारस बनाम राजस्थान राज्य

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